क्रिकेट के खेल में आईपीएल का फार्मेट बाद में आया है। क्रिकेट अब काफी पेशेवर और पैसे वाला खेल हो गया है। हालांकि शुरुआत में ऐसा नहीं था। जिन लोगों ने 70-80 के दशक में क्रिकेट का जुनून देखा होगा, वह समझ सकते हैं कि आज के क्रिकेट से वह कितना अलग था। तब टीम में जगह पाने के लिए प्रदर्शन ही एकमात्र योग्यता थी। आज के दौर की तरह खिलाड़ियों की नीलामी नहीं होती थी।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नियम-कानून आईसीसी और क्रिकेट की शीर्ष संस्थाएं बनाती हैं, जबकि आईपीएल में बहुत-कुछ टीम के मालिक तय करते हैं। सचिन तेंदुलकर ने ऐसी कई बातों को अपनी किताब “प्लेइंग इट माय वे” में लिखा है।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और आईपीएल में मूलभूत अंतर
वे लिखते हैं, “अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और आईपीएल में कुछ मूलभूत अंतर हैं। आईपीएल में टीम के मालिकों की करीबी भागीदारी होती है। उनकी मौजूदगी टूर्नामेंट में काफी प्रभाव डालती है।” सचिन ने जिस बात का प्रमुखता से जिक्र किया है वह है अंधविश्वास। उनका कहना है कि आईपीएल में कुछ के अपने अजीबोगरीब अंधविश्वास होते हैं, जिन्हें वे टीम पर थोपते हैं।
एक टीम में मालिक का पुजारी तय करता है कि खिलाड़ियों को मैच के दिनों में अपने होटल के कमरे कब रहना है और कब छोड़ना है। एक अन्य टीम के मालिक ‘वास्तु’ (जो फेंग शुई की तरह है) में विश्वास करते हैं और उनके ड्रेसिंग रूम को हमेशा एक विशेष तरीके से व्यवस्थित किया जाता है, जिसमें एक खास जगह पर ही दर्पण लगाए जाते हैं।
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सचिन तेंदुलकर एक मजेदार किस्सा बताते हैं। वे लिखते हैं कि एक बार हमारे खिलाफ मैच में इस टीम ने आगे बढ़कर हमारे ड्रेसिंग रूम को भी बदल दिया था, बदले में, हमने देर रात इस व्यवस्था को बदल दिया और विपक्ष को परेशान करने के लिए सभी दर्पणों को तौलिये से ढंक दिया गया।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से आईपीएल में एक और महत्वपूर्ण अंतर संस्कृति का है। भारतीय टीम के लगभग सभी खिलाड़ी एक समान बैकग्राउंड से आते हैं और भारतीय खेल प्रणाली से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं। जबकि आईपीएल टीम में अलग-अलग देशों के खिलाड़ी होते हैं और उनके साथ बांडिंग करना बहुत आसान नहीं होता है। आईपीएल में एक नौसिखिया भारतीय खिलाड़ी और एक स्थापित अंतरराष्ट्रीय दिग्गज के बीच व्यापक सांस्कृतिक अंतर होता है।