युवराज सिंह जिस फैमिली से आते हैं, वह बहुत ही सख्त मिजाज वाली फैमिला है। वहां पर जो फैसले होते हैं उसमें बहुत आसानी से बदलाव नहीं होते हैं। एक इंटरव्यू में युवराज सिंह ने बताया कि उन्हें बचपन में स्केटिंग और टेनिस खेलना बहुत पसंद था। वे टेनिस में ही आगे बढ़ना चाहते थे। एक दिन उन्होंने अपनी मां से कहा कि मुझे एक रैकेट दिला दें। रैकेट महंगा था। ठीकठाक रैकेट ढाई-तीन हजार का था।
उनके पापा क्रिकेटर रहे हैं और वे क्रिकेट के अलावा किसी भी खेल के बारे में भी इंट्रेस्ट नहीं रखते थे। वे चाहते थे कि युवराज भी क्रिकेट खेले। इसलिए जब उनकी मां ने उनके पिता से रैकेट दिलाने को कहा तो वे बहुत गुस्सा हुए। हालांकि नाराजगी के बाद भी उन्होंने युवराज को रैकेट दिला दिया।
युवराज बोले उस रैकेट से वे कुछ दिन खेले, लेकिन एक टूर्नामेंट के दौरान वह टूट गया। उनके पिता इसको दिलाते समय काफी गुस्से में थे इसलिए दोबारा मांगने की युवराज की हिम्मत नहीं पड़ी। मजबूरन वह फिर से क्रिकेट खेलने लगे। इस बार उनको क्रिकेट में अच्छा लगने लगा। जब इसमें लोकल स्तर पर एक दो बार जीते तो उन्होंने इसमें पूरी तरह से मन लगाना शुरू कर दिया।
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इसके बाद युवराज के पिता ने उनको जमकर ट्रेनिंग दी। घर के पीछे गार्डन को साफ करके उसे छोटा से नेट प्रैक्टिस की जगह बना दी थी। यहां पर भी काफी प्रैक्टिस कराई। एकेडमी भेजी। एक बार जब युवराज इसमें बढ़ना शुरू किये तो अंत तक बढ़ते रहे।
युवराज सिंह एकमात्र खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सबसे ज्यादा आईसीसी टूर्नामेंट (छह बार) के फाइनल खेले हैं। 2002 चैंपियंस ट्रॉफी, 2003 वर्ल्ड कप, 2007 टी20 वर्ल्ड कप, 2011 वर्ल्ड कप, 2014 टी20 वर्ल्ड कप और 2017 चैंपियंस ट्रॉफी में वे खेल चुके हैं।
युवराज मेहनती, धैर्यशाली और साहसी खिलाड़ी हैं। वे बड़े से बड़े संकट के समय भी धैर्य बनाये रखते हैं। इसके चलते वह कभी असफल नहीं होते हैं। उन्होंने एक किताब ‘द टेस्ट ऑफ माइ लाइफ’ लिखी है, जिसमें विस्तार से बताया है कि जब उनको कैंसर हो गया था तो वे कैसे खुद को संभाले रहे।