आठवें साल मां दूर हो गईं, 14वें में सौतेले पिता संग रहना पड़ा, साथी ब्लैक बास्टर्ड कहते थे, ऐसी थी गार्डन ग्रीनिज की संघर्ष गाथा
वेस्टइंडीज के पूर्व क्रिकेटर गार्डन ग्रीनिज (Gordon Greenidge) उन कुछ क्रिकेटरों में रहे हैं, जिन्होंने काफी संघर्ष करके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी जगह बनाई है। बचपन से ही पैसे की तंगी झेलनी पड़ी और आठ साल की उम्र में ही मां से दूर रहना पड़ा। मां ने लंदन में दूसरी शादी कर ली तो उन्हे 14 साल की उम्र में सौतेले पिता के साथ रहना पड़ा।
लंदन में झेलना पड़ा था नस्लीय भेदभाव
गार्डन ग्रीनिज ने अपनी जीवनी ‘गॉर्डन ग्रीनिज द मैन इन मीडिल’ में अपने बारे में लिखा है कि लंदन में उनको नस्लीय भेदभाव का शिकार होना पड़ा। कॉलेज के साथी उनको ब्लैक बास्टर्ड कहते थे। वह शुरू में क्रिकेट नहीं खेलते थे। बाद में वह इस ओर कैरियर बनाने की सोचने लगे।
पढ़ाई के दौरान हुआ था इंग्लिश काउंटी क्लब हैंपशायर से जुड़ाव
पढ़ाई के दौरान उनका इंग्लिश काउंटी क्लब हैंपशायर से जुड़ाव हुआ। वहां वह दो साल तक खेले। इसके बाद वह अपने घर बारबाडोस वापस लौट गये। वहां भी वह क्रिकेट खेलना जारी रखे। इस दौरान उनको वहां घरेलू मैचों में अच्छा प्रदर्शन के कारण वेस्टइंडीज की ओर से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खेलने का मौका मिला।
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गार्डन ग्रीनिज को 1974 में भारत के खिलाफ बेंगलुरु टेस्ट में पहली बार अंतरराष्ट्रीय शुरुआत करने का अवसर मिला। इसमें उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा और उन्होंने दोनों पारियों में 93 और 107 रन बनाए। इस मैच में वेस्टइंडीज की शानदार जीत हुई। इसके अलावा भी ग्रीनिज ने कई ऐसे रिकॉर्ड बनाए, जिससे वे दुनिया के श्रेष्ठ क्रिकेटरों में गिने जाने लगे। ग्रीनिज ने कुल मिलाकर 92 शतकों के साथ 37,000 से अधिक रन बनाए थे। वह वेस्टइंडीज टेस्ट क्रिकेट के लिए चयन समिति में भी रहे। ग्रीनिज ने बांग्लादेश क्रिकेट टीम के कोच के रूप में भी काम किया और वहां के खिलाड़ियों के आगे बढ़ने में मदद की।
आक्रामक बल्लेबाज, ग्रीनिज की सर्वश्रेष्ठ पारी 1984 में लॉर्ड्स में इंग्लैंड के खिलाफ थी। इसमें उन्होंने 214 रन बनाए थे। टेस्ट क्रिकेट से उनकी विदाई के दौरान ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी 226 रन का योगदान उनकी करियर की सर्वश्रेष्ठ पारी थी।