क्रिकेट की दुनिया में विराट कोहली की सफलता आज सब देख रहे हैं, लेकिन इसके पीछे का संघर्ष बहुत कम लोगों को मालूम है। साल 2001 में कोहली परिवार को किराए के मकान में शिफ्ट होना पड़ा था। अपना मकान गिरवी रखना पड़ा था। बिजनेस नहीं चला। सो, मकान चला गया।
पिता नहीं चाहते थे कि रिश्वत देकर विराट को आगे बढ़ाएं
यह अलग बात है कि आज विराट कोहली के पास कई करोड़ रुपए के कई बंगले हैं, लेकिन तब परिवार को विराट कोहली को क्रिकेटर बनाने का सपना दूभर लग रहा था। क्रिकेट किट का इंतजाम तो हो जाता, लेकिन टीम में चयन के लिए अफसरों को घूस देने और उनके लिए शराब का इंतजाम करने के पैसे नहीं थे। कोहली के पिता चाहते भी नहीं थे कि इस तरह बेटे को क्रिकेटर बनाया जाए। वह चाहते थे कि उनका बेटा रन के दम पर क्रिकेट टीम में शामिल हो।
पिता ने ऑनलाइन ट्रेडिंंग शुरू की, लेकिन सफल नहीं, ब्रेन स्ट्रोक भी हो गया
इस बीच, परिवार की स्थिति सुधारने के मकसद से विराट के पिता ने ऑनलाइन ट्रेडिंंग शुरू की, लेकिन किस्मत ने वहां भी धोखा दिया। यह कोहली परिवार के लिए दूसरा बड़ा झटका था। कोहली के पिता इस सदमे से उबर नहीं पाए। उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हो गया। उनकी आंखों की रोशनी कम हो गई और शरीर में आंशिक रूप से लकवा मार गया।
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विराट कोहली के लिए परिवार को इस हाल में देखना मुश्किल था। लेकिन, इस तनावपूर्ण हालात से ताकत बटोर कर विराट ने क्रिकेटर बनने का अपना संघर्ष जारी रखा। 18 दिसंबर, 2006 की शाम कोहली लीग मैच खेल कर खुशी-खुशी घर आए थे। उन्होंने रणजी ट्रॉफी में नाबाद 40 रन ठोके थे और अगली सुबह फिर खेलने जाना था। लेकिन, तड़के पिता को दिल का दौरा पड़ गया। पड़ोस के डॉक्टर घर आए। बचाने की कोशिश की। लेकिन, बात नहीं बनी। तब अस्पताल ले जाया गया। वहां पहुंचते ही डॉक्टरों ने बुरी खबर सुना दी। कोहली के सिर से पिता का साया उठ चुका था। यह सब विराट की आंखों के सामने हुआ। लेकिन, विराट की आंखों से आंसू नहीं निकला। उन्होंने अपने कोच को बताया कि वह मैच खेलने आएंगे।
19 दिसंबर की सुबह विराट कोटला के मैदान पहुंचे। दोपहर बाद साढ़े तीन बजे पिता का अंतिम संस्कार तय था। ड्रेसिंंग रूम में पहुंचते ही विराट की आंखों से आंसू गिरने लगे। उन्होंने तुरंत संभाला और मैदान पर उतरे। 90 रन बना कर वह लौटे। कुछ समय पहले विराट ने इस घटना का जिक्र करते हुए बताया था कि पिता की मौत के बाद भी उनकी आंखों में आंसू क्यों नहीं आए और उनमें कोच को मैच खेलने की जानकारी देने की हिम्मत कहां से आई, यह आज तक वह समझ नहीं पाए।