क्रिकेटर वेंकटेश अय्यर (Venkatesh Iyer) की कहानी जरा हट कर है। वह पढ़-लिख कर सीए बनना चाहते थे लेकिन क्रिकेट खेलने का शौक पालते थे। वह पढ़ाई में भी अच्छे थे और क्रिकेट भी अच्छा खेलते थे। वह चाहते थे कि बीकॉम करके बाद बाद में चार्टर्ड अकाउंटेंट बना जाए, लेकिन उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंट के कोर्स में दाखिला नहीं लिया। इसमें दाखिला लेने पर वह तीन साल तक बंध जाते। ऐसे में क्रिकेट का शौक पीछे छूट जाता।
खेलने के लिए छोड़ दी थी अमेरिकन नौकरी
वेंकटेश ने फाइनेंस में एमबीए किया। उन्हें अमेरिकी फर्म डिलॉयट में नौकरी भी मिल गई। लेकिन इस नौकरी में उन्हें या तो बेंगलुरु या हैदराबाद में रहना पड़ता। क्रिकेट एक बार फिर छूटने की नौबत बन रही थी। वेंकटेश ने नौकरी छोड़ क्रिकेट को चुना। वेंकटेश की मां भी यही चाहती थीं कि बेटे को जो सबसे ज्यादा पसंद है, वही करे। नौकरी तो कभी भी मिल जाएगी।
कई शहरों में नौकरी के बाद परिवार इंदौर में सेटल हो गया था
वेंकटेश की मां उषा इंदौर के एक अस्पताल में फ्लोर कोऑर्डिनेटर थीं। पिता भी मध्य प्रदेश में ही एक कंपनी में एचआर डिपार्टमेंट में काम करते थे। भोपाल, देवास आदि कई शहरों में काम किया और फिर इंदौर में सेटल हो गए।
एक दक्षिण भारतीय परिवार के लिए यह साधारण बात नहीं है कि वह अपने बेटे को क्रिकेट खेलने के लिए बढ़ावा दे। लेकिन, बेटे की खुशी के लिए परिवार ने समाज की चिंंता नहीं की। हालांकि, वेंकटेश की सफलता देख कर अब परिवार के सारे लोगों के साथ-साथ उनके सारे रिश्तेदार भी उनके इस फैसले से खुश हैं।
लेकिन वेंकटेश को क्रिकेट से इतना प्यार हुआ कैसे? इस बारे में उनके पिता ने इंटरव्यू में एक किस्सा बताया था। एक बार भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच मुकाबला हो रहा था और उसमें सौरव गांगुली जल्दी आउट हो गए। उन्हें आउट हुआ देख वेंकटेश जोर-जोर से रोने लगा। पिता ने समझाया कि कोई बात नहीं, अगल मैच में सौरव अच्छा खेलेंगे। लेकिन, वेंंकटेश पर असर नहीं हुआ और दो दिन तक उनकी तबीयत खराब रही। क्रिकेट को लेकर इस लगाव को देखते हुए पिता ने बेटे को क्रिकेट की ट्रेनिंंग लेने के लिए दाखिला दिलवा दिया।