टीम इंडिया के क्रिकेटर उमेश यादव की कहानी फल की चिंंता छोड़, संघर्षों से जूझते हुए कर्म करते जाने के फलसफे पर चलकर सफल होने की कहानी है। क्रिकेटर बनने से पहले भी उनके जीवन में संघर्ष था और बाद में भी रहा। उमेश यादव का जन्म 1987 में 25 अक्तूबर को हुआ था। उनके पिता तिलक यादव कोयला खदान में काम करते थे। उनका पूरा परिवार कोयला खदान के मजदूरों के लिए बनाए गए क्वार्टर में रहता था। परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी। उमेश कुमार पुलिस या फौज में भर्ती होकर परिवार का सहारा बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कोशिश की, पर कामयाबी नहीं मिली तो हार कर क्रिकेट का रुख किया।
उमेश यादव ने पहली कमाई से परिवार के लिए घर बनवाया था
उमेश यादव विदर्भ की टीम से जुड़े और प्रीतम पंढे की कप्तानी में क्रिकेट के गुर सीखे। 2008 में उन्हें पहली बार मध्य प्रदेश के खिलाफ रणजी खेलने का मौका मिला। उसी बीच आईपीएल की शुरुआत हुई और 2010 में उमेश यादव को भी आईपीएल में मौका मिला। आईपीएल से पहली कमाई होने पर उमेश यादव ने सबसे पहले अपने संयुक्त परिवार के लिए घर बनवाया। उमेश कुमार क्रिकेट खेल कर विदेश से जब घर आते हैं तो भतीजे-भतीजियों के लिए चॉकलेट और पिता के लिए शानदार व्हिस्की लाना नहीं भूलते। हालांकि, 2023 में 22 फरवरी को पिता का साथ हमेशा के लिए छूट गया।
उमेश के कैरियर के लिए पिता खुद अपनी चिंता नहीं करते थे
उमेश यादव का जन्म नागपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर खापरखेड़ा गांव में हुआ था। पिता ने परिवार को पालने में सेहत की भी परवाह न की। कोयला खदान में काम करते हुए उन्हें सांस की भी तकलीफ रही, लेकिन उनकी खुशी सिर्फ बबलू (उमेश का घर का नाम) का क्रिकेट कॅरिअर बनते देखने में थी। 74 साल की उम्र में बीमारी से जूझते हुए नागपुर में 22 फरवरी, 2023 को जब उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा तो उन्हें यह देख लेने का सुकून जरूर रहा होगा।
उमेश के पिता बेहद साधारण जिंदगी जीते थे। जब बेटे ने दौलत और शोहरत कमाई तब भी वह लाइमलाइट में नहीं आना चाहते थे। एक बार उन्होंने बताया था कि जब वह बाजार गए तो अपना चेहरा ढंक लिया ताकि उन्हें कोई पहचान नहीं सके। हां, क्रिकेटर बनने के बाद परिवार में पैसा आया तो बहुत सारे लोग उनके पास अलग-अलग काम के लिए मदद मांगने आने लगा। कोई मंदिर बनवाने के लिए तो कोई बेटी की शादी के लिए।
उमेश के दोस्त उनकी नेकदिली और उदारता के कायल हैं
पिता के इस स्वभाव की झलक उमेश यादव में भी है। उन्हें जानने वाले बताते हैं कि उमेश यारों का यार है और किसी पर भरोसा करता है तो पूरी तरह करता है। उनके एक दोस्त ने उनको एक फ्लैट बेचा और बाजार दाम से करीब दोगुना पैसा ले लिया। उमेश को जब इसका अहसास हुआ, तब भी उन्होंने बुरा नहीं माना। कोई जब इस बात की चर्चा भी कर देता है तो वह बात टाल देते हैं। हाल ही में ऐसी भी खबर आई कि उनके मैनेजर ने उनके साथ 44 लाख रुपए की धोखाधड़ी कर ली।
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प्रीतम पंढे कहते हैं- उमेश में छल-कपट है ही नहीं। न ही वह इस स्वभाव का है कि अपनी मार्केटिंंग खुद करे। न ही वह किसी को जबरदस्ती खुश करने के लिए कुछ करने वाला लड़का है। वह सोशल मीडिया पर इमेज चमकाने की इच्छा भी नहीं रखता। ‘शोबाजी’ में उसका यकीन ही नहीं है।
उमेश ने शुरू से जीवन में उतार-चढ़ाव देखे। क्रिकेट करिअर शुरू करने के बाद भी। कई बार ऐसा हुआ कि उन्हें टीम से बाहर रहना पड़ा। लेकिन, उन्होंने इस दर्द को खुलकर कभी जाहिर नहीं किया। तब भी नहीं जब 2019 में वर्ल्ड कप के लिए टीम चुनी जा रही थी और उसमें उमेश यादव को नहीं शामिल किया गया। एक बार उन्होंने एक पत्रकार से बस इतना कहा था कि बुरा तो लगता है, लेकिन अच्छा यही है कि आप हालात को समझें और उसका सामना करें।