पाथुम निशंक। श्रीलंकाई क्रिकेटर। बेहद गरीबी में पला-बढ़ा। पिता एक क्रिकेट मैदान में ग्राउंड ब्वॉय का काम करते थे। मां मंदिर के बाहर फूल बेचती थीं। निशंक में अच्छा क्रिकेटर बनने की पूरी संभावना थी, पर गरीबी इस संभावना को पनपने नहीं दे रही थी। ऐसे में ही प्रदीप निशांत नाम का एक कोच निशंक के लिए फरिश्ता बन कर आया।
दोस्त नीलांता के साथ निशंक की तलाश में भटक रहे थे प्रदीप
प्रदीप निशांत एक दिन अपने दोस्त नीलांता के साथ निशंक की तलाश में भटक रहे थे। प्रदीप निशंक को कोलंबो में क्रिकेट इंस्टीट्यूट में दाखिला दिलवाना चाहते थे। वे उनका घर ढूंढ़ रहे थे, पर मिल नहीं रहा था।
कलुतारा बोडिया मंदिर में हुई मुलाकात
निशंक का परिवार एक छोटे से सरकारी मकान में रहता था। सरकार ने यह मकान सुनामी से प्रभावित गरीब लोगों को दिया था। प्रदीप को जब निशंक का मकान नहीं मिला तो उन्होंने उनके पिता सामंता से संपर्क साधा और कहा बेटे को लेकर कलुतारा बोडिया मंदिर में आ जाएं। यह उस इलाके का नामी मंदिर था। और, इसी मंदिर के बाहर निशंक की मां फूल बेचा करती थीं।
मंदिर में कोच से उस मुलाकात ने निशंक की किस्मत बदल दी। कोलंबो में उसका दाखिला क्रिकेट इंस्टीट्यूट में हो गया। लेकिन, वहां रहने-खाने की समस्या हुई। इसमें भी कोच निशांत मदद के लिए आगे आए। उन्होंने अपने दोस्त नीलांता की मदद ली।
नीलांता एक फूलों का व्यापार करने वाली कंपनी में काम करते थे। उन्होंने अपनी कंपनी के जरिए निशंक के लिए मासिक भत्ता शुरू करवा दिया। निशंक का खेल देखकर कंपनी इतनी खुश थी कि जब वेस्ट इंडीज दौरे के लिए उसका चयन हुआ तो ढाई लाख रुपए का ईनाम दे दिया। वहां पहले ही टेस्ट में निशंक ने शतक ठोंक दिया। इस तरह एक कोच ने प्रतिभा को पहचान कर उसे अपने प्रयासों से निखारा।