Sourav Ganguly Emotional Side: टीम इंडिया के सीनियर प्लेयर, कप्तान और बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे सौरव गांगुली क्रिकेट खेलने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते थे। वे जब मैदान में होते थे तो विपक्षी टीम की हर गतिविधि पर नजर रखते थे। उन्होंने आत्मकथा एक सेंचुरी इज नॉट इनफ (A Century Is Not Enough) में इसका जिक्र किया है।
Sourav Ganguly Emotional Side: निराशा के बावजूद खुद को मजबूत बनाए रखते हैं गांगुली
सौरव गांगुली का एक मजबूत पक्ष है। वह निराशा और त्रासदी के बावजूद खुद को मजबूत बनाए रखते हैं। हालात से समझौता करने के बजाए मजबूती से लड़ते हैं। यही वजह है कि जब-जब उन्हें टीम से निकाला गया या बाहर किया गया, उन्होंने हर बार दोगुनी मेहनत से कोशिश कर अपनी कमियों को दुरुस्त किया और टीम में प्रमुखता से जगह बनाई।
उन्होंने उसमें कहा था कि वह जीवन भर रिजेक्शन, निराशा और त्रासदी के हालातों से गुजरे हैं। अनगिनत बार रिजेक्ट किए गए। कई बार टीम में लिया गया और निकाला गया। जीवन रोलर कोस्टर जैसा हो गया था। कभी इधर तो कभी उधर घूमता रहा।
सौरव गांगुली कभी भी जिम्मेदारी लेने से नहीं बचते हैं। वह हर जिम्मेदारी को एक मजबूत नेतृत्वकर्ता की तरह संभालते रहे हैं। चाहे देश के अंदर हो या बाहर हर जगह उन्होंने टीम को जीत के लिए मनोबल बढ़ाने में पीछे नहीं रहते थे। साथी खिलाड़ियों के लिए वह एक अच्छे नेतृत्व कर्ता की भूमिका में रहे हैं।
ऑटोबॉयग्राफी एक सेंचुरी इज नॉट इनफ (A Century Is Not Enough) में उन्होंने लिखा, “मेरे अनुभव ने मुझे सिखाया था कि जब मैं सबसे ज्यादा मेहनत करता हूं तो मैं सबसे अच्छा खेलता हूं। इसलिए मुझे विश्वास था कि मेरा समय आएगा। मुझे पता था कि मैं एक विजेता था।”
उन्होंने इसको और साफ करते हुए लिखा, “विजेता होना इस बारे में है कि आपके दिमाग में क्या चल रहा है। और मैंने कभी भी खुद पर भरोसा नहीं छोड़ा। मैंने क्रिकेट के मैदान को देखा और मुझे लगा कि यह मेरा है। मैं हर सुबह सफल होने के लिए उठता हूं।”