भारतीय महिला खिलाड़ी शांता रंगास्वामी (Shantha Rangaswamy) अपने समय की एक ऐसी क्रिकेटर रही हैं, जिन्होंने अपने नाम के अनुरूप बेहद शांति पूर्वक, परिश्रम के साथ देश के लिए खेलने का जुनून के साथ मैदान पर अपनी कला का प्रदर्शन किया। वह जब छोटी थीं तब घर के आंगन में कई तरह के खेल खेलती थीं। उनका बड़ा परिवार था। खुद शांता छह बहनों के बीच तीसरे नंबर की थी।
शुरू में शांता बैडमिंटन और सॉफ्टबॉल खेलती थीं। एक दिन उन्होंने नया प्रयोग किया। वह लड़कों की तरह क्रिकेट खेलने की ठान ली और बैटबॉल लेकर घर के आंगन में ही बहनों के साथ खेलना शुरू कर दिया। इसमें उनको मजा आने लगा। फिर क्या था, वह आसपास के एक क्लब का पता करने लगीं।
जब उसका पता चला तो वह वहां पर एडमिशन लेकर क्लब की ओर से खेलने लगीं। ऐसा करने वाली वह परिवार की पहली युवती थीं। चेन्नई में 1954 में जन्मी
शांता रंगास्वामी की माता का नाम राजलक्ष्मी और पिता का नाम सीवी रंगास्वामी था। क्लब क्रिकेट खेलते हुए जब शांता रंगास्वामी ने काफी नाम कमा लिया तो उनका उत्साह बढ़ने लगा।
इसी बीच एक दिन उनको पता चला कि महिलाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय मैच शुरू हो रहा है। टीम के चयन के लिए महिला खिलाड़ियों के नाम मांगे गये तो शांता ने भी अपना नाम भेज दिया। वह साल 1976 की बात है।
वेस्टइंडीज के खिलाफ महिला क्रिकेटर्स की टीम का पहला टेस्ट मैच होना था। जब टीम फाइनल हो गई तो शांता को बड़ी हैरानी हुई। दरअसल भारतीय टीम की कमान उनको सौंपा गया। वह ऑलराउंडर खिलाड़ी थी और बैट-बॉल दोनों में दक्ष थीं। पहली भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पहली कप्तान बनने का रिकॉर्ड शांता के नाम दर्ज हो गया। मैच में शांता ने आक्रामक अंदाज दिखाया और शानदार बल्लेबाजी और फास्ट गेंदबाजी के बल पर उन्होंने टीम इंडिया को पहले टेस्ट मैच के सीरीज में 1-0 से जीत दिलाई।