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Sachin Tendulkar Family Playing It My Way: मेरे भविष्य के लिए भाई ने दांव पर लगा दिया अपना कैरियर, “प्लेइंग इट माय वे” में सचिन ने लिख दीं जिंदगी की दास्ताने

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भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर (फोटो- फेसबुक)

Sachin Tendulkar Family Playing It My Way: सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट ही नहीं विश्व क्रिकेट के सबसे सम्मानित खिलाड़ियों में से एक हैं। जिसका क्रिकेट से मामूली जुड़ाव भी होगा, वह भी सचिन के बारे में अच्छी तरह जानता होगा। तेंदुलकर बहुत कम उम्र में ही क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे, और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बहुत जल्द पैर जमा सके।

अपनी ऑटोबॉयग्राफी “प्लेइंग इट माय वे” में सचिन ने लिखा है कि वे जहां पहुंचे हैं, उस जगह तक पहुंचाने में सबसे ज्यादा योगदान उनके परिवार, परवरिश का रहा। तीन भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे सचिन बताते हैं कि वे घर के सबसे शरारती बच्चे थे, इसके बावजूद उनके माता-पिता ने कभी उन पर गुस्सा नहीं किया और न ही डांटा-फटकार, हमेशा प्यार दिया। उनके भाई अजीत तेंदुलकर, जो स्वयं एक अच्छे क्रिकेटर रहे हैं, ने सचिन के लिए अपना कैरियर दांव पर लगा दिया।

Sachin Tendulkar Family Playing It My Way: 1999 में पिता को खोना सबसे दुखद पल था

अपने पिता एक प्रतिष्ठित मराठी कवि, आलोचक और प्रोफेसर रमेश तेंदुलकर के बारे में सचिन ने लिखा, “मेरे पिता कभी भी मुझ पर चिल्लाते नहीं थे और मेरी शरारतों से निपटने के लिए हमेशा धैर्य रखते थे। जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, इसने मेरे पिता के प्रति मेरे सम्मान में इजाफा किया। इंग्लैंड में 1999 के विश्व कप के दौरान उन्हें खोना मेरे जीवन के सबसे दर्दनाक पलों में से एक है और मैं हमेशा उनका ऋणी रहूंगा जिन्होंने मुझे वह इंसान बनने में मदद की जो मैं हूं।”

टेस्ट मैच और वनडे मैच क्रिकेट के दोनों फार्मेट में सचिन एकमात्र खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सर्वाधिक रन बनाये हैं। सचिन का मानना है कि हर कोई एक जैसी परवरिश नहीं पाता है, लेकिन आगे बढ़ने के लिए शारीरिक मेहनत के साथ ही मानसिक तौर पर भी प्रोत्साहन मिलना जरूरी होता है। इस मामले में वे किस्मत वाले रहे हैं।

सचिन का पूरा परिवार उनको आगे बढ़ने और मनोबल बढ़ाने में भरपूर सहयोग दिया। सचिन अपने परिवार में मां, पिता, बहन और भाई हर किसी के योगदान को पूरा श्रेय देते हैं। यही वजह है कि तमाम शरारतों और परेशान करने की आदतों के बावजूद घर में वे सबसे दुलारे बने रहे, लेकिन खेल के प्रति अनुशासन बनाए रखने में सचिन ने कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी। यही अनुशासन ने उनको आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया।

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