वर्ल्ड कप मैच में क्रीज पर सचिन को करनी होती थी बात, सहवाग गा रहे थे गाना, फिर बना ये फसाना
Venkat Natrajan
2011 वर्ल्ड कप की बात है। एक मैच के दौरान सचिन तेंदुलकर ने वीरेंद्र सहवाग को बल्ले से मार दिया था। वह भी इसलिए क्योंकि सहवाग गाने गुनगुना रहे थे। वीरेंद्र सहवाग ने हाल ही में ‘रणवीर शो’ में इस वाकये के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा- 2011 वर्ल्ड कप में साउथ अफ्रीका के खिलाफ मैच चल रहा था। मैं काफी मूड में था। गाने और रन, दोनों आ रहे थे। 5 ओवर में हमारे 50-60 रन बन चुके थे। जब ओवर खत्म होता था तो मैं उनके (सचिन के) दस्तानों पर हाथ मारतो और ‘चला जाता हूं…’ गाना गुनगुनाते हुए चल देता था।
तीसरा ओवर खत्म होते ही सचिन ने बल्ले से मारा- फटाक!
सहवाग ने बताया- ओवर खत्म होने के बाद सचिन तेंदुलकर मुझसे बात करना चाहते थे, पर मैं गाना गुनगुनाते हुए चला जाता था। उन्होंने कहा तो मैंने कहा मेरा गाने का मूड है, रन भी बन रहे हैं। चौके भी आ रहे हैं। आप बस शाबाश-शाबाश करते जाओ। सहवाग की बात का सचिन पर कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने इंतजार किया। एक ओवर, दो ओवर…। तीसरा ओवर खत्म होते ही सचिन ने बल्ले से मारा- फटाक!
साइकियाट्रिस्ट से भी ली थी मदद, पर नहीं मिली निजात
सहवाग ने शो में यह भी बताया कि वह बैटिंग के बीच में गाना क्यों गाते थे। उनका कहना था कि रिलैक्स्ड रहने के लिए गाने से अच्छा और कोई तरीका नहीं है। उन्होंने बताया- मैदान पर मेरा दिमाग स्थिर नहीं रहता था। हमेशा दिमाग में चलता रहता था कि बॉल आ रही है, इसे मारना है। मैं कई साइकियाट्रिस्ट के पास गया और पूछा कि इससे निजात कैसे मिले? किसी ने बताया कि गहरी सांस लिया करो तो किसी ने कुछ और बताया। लेकिन कुछ काम नहीं आया। मैंने गहरी सांस ली, लेकिन छोड़ते ही फिर से दिमाग में वही बात आने लग गई। तब मैंने बैटिंंग करते हुए गाना शुरू किया। यह तरीका काम कर गया।
सहवाग ने सचिन के क्रिकेट ज्ञान के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि क्रिकेट के बारे में सचिन का जो ज्ञान था, वह एकदम अलग ही था। वह बोलर के बॉल फेंकने से पहले ही बता देते थे कि किस तरह की गेंद फेंकने वाला है। और ठीक वैसी ही गेंद सामने आती थी। वह बताते थे कि अब गेंद तुम्हारे पैड को हिट करेगी और सच में वैसी ही गेंद आती थी। यह अलग बात है कि मेरा बल्ला बीच में आ जाता था। क्रिकेट के बारे में जो उनका ज्ञान था वह सबसे अलग था।
सहवाग ने यह भी बताया कि कभी-कभी तेंदुलकर इस बात को लेकर निराश भी हो जाते थे कि बैटिंग और क्रिकेट को लेकर जिस तरह से वह सोचते हैं, दूसरे उस तरह से नहीं सोचते हैं। उन्हें लगता था कि दूसरे भी उसी तरह बैटिंग करें जैसा वह खुद करते हैं। यह संभव नहीं था। जैसे मैं चौका-छक्का मार सकता हूं तो यह जरूरी नहीं कि बाकी भी ऐसा कर सकें। उनका जो तरीका था वह सिर्फ वही कर सकते हैं, मैं नहीं कर सकता। कभी-कभी वह इस बात पर गुस्सा भी हो जाते थे कि बाकी खिलाड़ी भी उन्हीं की तरह बैटिंंग क्यों नहीं करते।