पूजा वस्त्राकर। भारत की महिला क्रिकेटर। मध्य प्रदेश के शहडोल से टीम इंडिया के लिए क्रिकेट खेलने वालीं पहली और इकलौती महिला। घर में सात भाई-बहनों में सबसे छोटी। दस साल की थीं तो मां गुजर गईं। बड़ी बहन ने मां का रोल अपना लिया। एथलीट बनने का अपना सपना त्याग दिया। पूजा ने भी उनका त्याग बेकार नहीं जाने दिया।
पूजा और पढ़ाई में 36 का रिश्ता रहा। पिता ने प्राइमरी स्कूल में दाखिला कराया तो कोई न कोई बहाना बना कर क्लास से निकल जाती थीं। क्रिकेट में रुचि बढ़ती ही गई। क्रिकेट से प्यार उतना ही रहा, जितना पढ़ाई से बोरियत होती थी।
हालांकि, टीचर की शिकायत पर पिता की डांट पड़ी तो पढ़ाई में भी दिलचस्पी जगी और बाद में तो क्लास की मॉनीटर भी बनाई गईं। लेकिन, तब तक क्रिकेट से कुछ ज्यादा ही प्यार हो गया था। फिर पढ़ाई और क्रिकेट पर साथ-साथ ध्यान देना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में किसी एक को चुनना था। पूजा ने फैसला किया कि क्रिकेट पर ज्यादा फोकस करना है। तब पूजा छठी क्लास में ही थीं और केवल दस साल की थीं। उस समय वह सीजन-बॉल क्रिेकेट खेला करती थीं।
पूजा जब अपने मोहल्ले की गलियों में क्रिकेट खेला करती थीं तो बॉल अक्सर लोगों के घरों में चली जाया करती थी। किसी के घर जाने पर बॉल वापस नहीं मिलती थी। सभी खिलाड़ियों को दो-दो रुपए जमा कर नई गेंद लानी पड़ती थी। इस झंझट से निजात पाने के लिए तय हुआ कि खेलने की जगह बदली जाए।
एक सुबह सब लोग स्टेडियम में पहुंच गई। वहां लड़के पहले से कब्जा जमाए हुए थे। अगली सुबह फिर पूजा की टीम स्टेडियम पहुंची। तब लड़के फिटनेस ट्रेनिंग में फंसे थे। पूजा और उनकी टीम ने नेट्स खाली देखते ही धावा बोल दिया और क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया। फिर तो खेल में इतनी रम गईं कि याद ही नहीं रहा कि वे अकेडमी से बाहर की हैं।