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पूजा वस्‍त्राकर: टीवी पर क्र‍िकेट देखा और तय कर ल‍िया क्र‍िकेट में ही बनाना है कॅर‍िअर, टॉयलेट का बहाना कर स्‍कूल से भाग जाती थीं 

पूजा वस्‍त्राकर। भारत की मह‍िला क्र‍िकेटर। मध्‍य प्रदेश के शहडोल से टीम इंड‍िया के ल‍िए क्र‍िकेट खेलने वालीं पहली और इकलौती मह‍िला। घर में सात भाई-बहनों में सबसे छोटी। दस साल की थीं तो मां गुजर गईं। बड़ी बहन ने मां का रोल अपना ल‍िया। एथलीट बनने का अपना सपना त्‍याग द‍िया। पूजा ने भी उनका त्‍याग बेकार नहीं जाने द‍िया। 

पूजा के प‍िता बीएसएनएल में काम करते थे। पहले वह ब‍िलासपुर में थे। बाद में शहडोल (मध्‍य प्रदेश) तबादला हो गया था। पूजा का जन्‍म शहडोल में ही हुआ। उनकी चार बहनें और दो भाई हैं। कॉलोनी के बाकी बच्‍चों के साथ वे सब क्र‍िकेट खेलते थे। 22 बच्‍चों की उनकी मंडली थी।
पूजा चार साल की थीं, तभी से कॉलोनी में क्र‍िकेट खेलना शुरू कर द‍िया था। उनकी मंडली उन्‍हें खाली फील्‍ड‍िंंग कराती थी। फील्‍ड‍िंग करना उन्‍हें ब‍िल्‍कुल पसंद नहीं था। लेक‍िन, वह खेलती रहीं।

पूजा और पढ़ाई में 36 का र‍िश्‍ता रहा। प‍िता ने प्राइमरी स्‍कूल में दाख‍िला कराया तो कोई न कोई बहाना बना कर क्‍लास से न‍िकल जाती थीं। क्र‍िकेट में रुच‍ि बढ़ती ही गई। क्र‍िकेट से प्‍यार उतना ही रहा, ज‍ितना पढ़ाई से बोर‍ियत होती थी।

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हालांक‍ि, टीचर की श‍िकायत पर प‍िता की डांट पड़ी तो पढ़ाई में भी द‍िलचस्‍पी जगी और बाद में तो क्‍लास की मॉनीटर भी बनाई गईं। लेक‍िन, तब तक क्र‍िकेट से कुछ ज्‍यादा ही प्‍यार हो गया था। फ‍िर पढ़ाई और क्र‍िकेट पर साथ-साथ ध्‍यान देना मुश्‍क‍िल हो रहा था। ऐसे में क‍िसी एक को चुनना था। पूजा ने फैसला क‍िया क‍ि क्र‍िकेट पर ज्‍यादा फोकस करना है। तब पूजा छठी क्‍लास में ही थीं और केवल दस साल की थीं। उस समय वह सीजन-बॉल क्र‍िेकेट खेला करती थीं।

पूजा को टीवी पर पुरुषों का क्र‍िकेट देखते-देखते उन्‍हें ख्‍याल आया क‍ि क्र‍िकेट में भी कॅर‍िअर बन सकता है। उनकी बहन एथलीट थीं। उनसे बातचीत में पता चला क‍ि मह‍िला क्र‍िकेट टीम भी है और इसमें भी कॅर‍िअर का व‍िकल्‍प है। इस बीच अपने से बड़े लोगों से बातचीत में क्रि‍केट से जुड़े कई सवालों का जवाब म‍िल गया। इसके बाद तो पूजा ने तय ही कर ल‍िया क‍ि अब क्र‍िकेट में ही कॅर‍िअर बनाना है।

पूजा जब अपने मोहल्‍ले की गल‍ियों में क्र‍िकेट खेला करती थीं तो बॉल अक्‍सर लोगों के घरों में चली जाया करती थी। क‍िसी के घर जाने पर बॉल वापस नहीं म‍िलती थी। सभी ख‍िलाड़‍ियों को दो-दो रुपए जमा कर नई गेंद लानी पड़ती थी। इस झंझट से न‍िजात पाने के ल‍िए तय हुआ क‍ि खेलने की जगह बदली जाए।

एक सुबह सब लोग स्‍टेड‍ियम में पहुंच गई। वहां लड़के पहले से कब्‍जा जमाए हुए थे। अगली सुबह फ‍िर पूजा की टीम स्‍टेड‍ियम पहुंची। तब लड़के फ‍िटनेस ट्रेन‍िंग में फंसे थे। पूजा और उनकी टीम ने नेट्स खाली देखते ही धावा बोल द‍िया और क्र‍िकेट खेलना शुरू कर द‍िया। फ‍िर तो खेल में इतनी रम गईं क‍ि याद ही नहीं रहा क‍ि वे अकेडमी से बाहर की हैं।

जब लड़कों की ट्रेन‍िंग खत्‍म हुई तो एक लंबा सा लड़का पूजा की ओर आते द‍िखा। पूजा को लगा क‍ि ब‍िना इजाजत खेलने के ल‍िए डांट पड़ने वाली है। लेक‍िन, लड़का तो आते ही पूजा की बैट‍िंग की तारीफ करने लगा। मौका देख कर पूजा ने भी उससे पूछ ल‍िया क‍ि क्‍या वह वहां रोज खेल सकती हैं। तब लड़के ने कोच को बुलाया और कोच ने इजाजत दे दी। इस तरह पूजा की अकेडमी में एंट्री हो गई।
वेंकट नटराजन खेल पत्रकार हैं। क्रिकेट में इनकी ना केवल रुचि है, बल्कि यह क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी भी रह चुके हैं। क्रिकेट से जुड़े क़िस्से लिखने के अलावा वेंकट क्रिकेट Match Live Update, Cricket News in Hindi कवर करने में भी माहिर हैं।