जानिए क्रिकेट के उस दौर का हाल जब विदेश दौरे पर जाने के लिए खिलाड़ियों को देने होते थे पैसे
साल 2023 में मार्च का महीना क्रिकेट के इतिहास में दर्ज हो गया। 4 से 26 मार्च, 2023 तक पहला वूमन प्रीमियर लीग (WPL) खेला गया। वूमन प्रीमियर लीग के पहले सीजन में 5 टीमों ने भाग लिया। इन्होंने 59.5 करोड़ रुपए खर्च कर 87 खिलाड़ी (30 विदेशी सहित) खरीदे। स्मृति मंधाना को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु ने सबसे ज्यादा 3.4 करोड़ रुपए देकर खरीदा। महिला क्रिकेट में पैसों की इतनी बरसात पहले कभी नहीं हुई। जो लोग यह दौर देख रहे हैं, उन्हें उस दौर के बारे में शायद ही पता हो जब भारतीय खिलाड़ियों को विदेश मैच खेलने जाना होता था तो उन्हें पैसे मिलते नहीं थे, बल्कि देने पड़ते थे।
पैसे न होने की वजह से निम्न और मध्यम वर्ग के प्लेयर्स विदेश नहीं जा पाते थे
महिला क्रिकेट टीम की कप्तान रहीं डायना इडुजी ने उन दिनों को याद करते हुए मीडिया के जरिए कई बातें साझा कीं। डायना 40-45 साल पहले के दौर को याद करते हुए बताती हैं कि उन दिनों अगर किसी खिलाड़ी को क्रिकेट खेलने के लिए विदेश जाना होता था तो उसे पैसे मिलते नहीं थे बल्कि देने पड़ते थे। इसी वजह से निम्न और मध्यम वर्ग के कई प्रतिभावान खिलाड़ी विदेश दौरे पर नहीं जा सकते थे।
1976 में महाराष्ट्र सरकार की मदद से आस्ट्रेलिया जा सकी थीं डायना और तीन अन्य
1976 में वेस्टइंडीज को हराने के बाद ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का दौरा हुआ तो हर खिलाड़ी को इस दौरे के लिए 10000 रुपए देने पड़े थे। इसी वजह से कई खिलाड़ी नहीं जा सकीं। डायना और उनकी तीन साथी खुशकिस्मत रहीं, क्योंकि उनके पैसे का इंतजाम महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सरकार की ओर से करा दिए थे। विदेश में रहने की भी अलग समस्या थी। ठहरने के लिए वहां रहने वाले किसी भारतीय परिवार की तलाश करनी होती थी। एक-एक परिवार में दो-दो खिलाड़ी ठहरा करते थे। होटल में रहने की तो सोच भी नहीं सकते थे। हालांकि, पुरुष टीम की स्थिति थोड़ी बेहतर थी।
देश के भीतर भी बिना रिजर्वेशन ट्रेन ही एकमात्र आने-जाने का जरिया था
देश के भीतर मैच के लिए सफर करना पड़ता था, तो ट्रेन एक मात्र जरिया था। बिना रिजर्वेशन के यात्रा करनी पड़ती थी। रिजर्वेशन हो भी गया तो चार की जगह पर आठ खिलाड़ी सफर किया करती थीं। डायना याद करती हैं कि कई बार खिलाड़ियों को टॉयलेट के पास भी सोना पड़ता था। बोगी की सीढ़ियों पर बैठ कर सफर करना पड़ता था। अगर ट्रेन बदलनी है तो स्टेशन पर वेटिंंग रूम में सोकर नींद पूरी करने की कोशिश करती थीं। जहां खेलना होता था, वहां खिलाड़ियों को ठहराने की व्यवस्था डोरमैट्रीज में होती थी। एक कमरे में 15-20 खिलाड़ियों को ठहराया जाता था।
डायना याद करते हुए बताती हैं कि महिला और पुरुष खिलाड़ियों में भेदभाव भारतीय स्टेडियम तक में दिखता था। एक बार जब वह नेशनल क्रिकेट एकेडमी बेंगलुरु में गई तो वहां महिला खिलाड़ियों के लिए टॉयलेट तक नहीं था।
डायना 26 जनवरी 1956 को मुंबई में पैदा हुई थीं। डायना ने 1976 के अक्टूबर-नवंबर में पहला मैच बेंगलुरु में खेला था। उन्होंने अपना आखिरी मैच 1991 में मेलबर्न में खेला। महिला टेस्ट मैच में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ियों में उनका स्थान तीसरे नंबर पर है। कभी टेस्ट मैच में सर्वाधिक रन (190) का रिकॉर्ड अपने नाम करने वालीं संध्या अग्रवाल अपने दौर को याद करते हुए बताती हैं कि फिटनेस के लिए साथी खिलाड़ियों को पीठ पर ढोती थीं, हाथों में ईंट लेकर मैदान के चक्कर लगाती थीं। आज की तरह जिम और फिटनेस एक्सपर्ट रखने की तो कोई सोच भी नहीं सकता था।