पाकिस्तान में महिलाओं को बहुत आजादी नहीं है, लेकिन वहां भी क्रिकेट समेत अधिकतर खेलों में लड़कियां और महिलाएं पूरी सक्रियता से भाग ले रही हैं। हालांकि ऐसा केवल बड़े शहरों या बड़े परिवारों में ही है। छोटे शहरों और गांवों में यह माहौल अब भी नहीं है। पाकिस्तान क्रिकेट टीम की सबसे सफल खिलाड़ियों में एक रहीं सना मीर (Sana Mir) ने अपनी जिंदगी का एक किस्सा सार्वजनिक किया।
उन्होंने बताया कि वह बचपन में जब पहली बार बैट पकड़ीं, तब वह केवल तीन-चार साल की रही होंगी। उनके अब्बू सरकारी नौकरी में थे और गिलगिट में पोस्टेड थे। उस समय वह अपनी मोहल्ले के अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलती थीं। बाद में उनके अब्बू का कई जगह तबादला हुआ।
वह जहां जाते तो वे वहां सना के लिए अच्छे स्कूल की खोज करते थे, जबकि वहां पर अपनी उम्र के बच्चों का पता लगाती थी, ताकि वह उनके साथ क्रिकेट खेल सके। जब उनको ऐसे बच्चे मिल जाते थे तो वे क्रिकेट खेलने के लिए उनको तैयार कर लेती थीं और खेलने लगती थीं। यानी क्रिकेट से उनका रिश्ता बहुत छोटेपन से ही हो गया था।
सना ने एक और बात बताई। उन्होंने बताया कि उनके भाई उनसे नौ साल बड़े हैं। वे जब आठ-नौ साल की थीं, तब अपने भाई और उनके दोस्तों को क्रिकेट खेलते हुए देखती थीं तो वे भी उनके पास मैदान में पहुंच जाती थीं। तब भाई लोग उनसे अधिकतर फिल्डिंग कराते थे, बाद में उन्हें लगता था कि एक दो बाल इसे भी फेंककर बैटिंग करने का चांस दे दें। तब वे उसे बैटिंग करने के लिए दे देते थे। इससे सना के मन में क्रिकेट खेलने का मन बढ़ने लगा और वह बाद में जुनूनी हो गईं।
हालांकि जब सना 12-13 साल की हुईं, तब उनको इस तरह बाहर निकल कर क्रिकेट खेलने से रोक दिया गया। पाकिस्तान में 12-13 साल की बच्ची को बाहर निकलकर मोहल्ले दूसरे बच्चों के साथ खेलने को गलत माना जाता है। हालांकि लड़कों के लिए ऐसी बंदिशें नहीं हैं। लिहाजा सना का खेलना बंद हो गया था। उनके कॉलेज में ग्राउंड छोटा था, इसलिए वहां क्रिकेट नहीं होता था। बॉस्केटबॉल, टेनिस आदि खेल होते थे।
सना बताती हैं कि चार साल तक वे क्रिकेट नहीं खेल सकीं। बाद में वे जब और बड़ी हुईं और कालेज जाने के दौरान एक क्लब ज्वाइन कर लिया। वहां से फिर उनका क्रिकेट का दौर शुरू हुआ, जो उनको अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तक पहुंचा दिया।