पाकिस्तानी क्रिकेटर शादाब खान (Shadab Khan) पंजाब के शहर मियांवाली से निकलकर अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट तक की यात्रा में कई बाधाओं को पार किया था। इस दौरान उन्होंने काफी गरीबी झेली, बुनियादी जरूरतों को पूरा न हो पाने की वजह से तमाम तरह की बाधाओं का सामना किया। बिगड़े हालात का आलम यह था कि उनके पास उम्दा दर्जे का क्रिकेट किटबैग भी नहीं था। लेकिन एक चीज ऐसी है जो उनके पास भरपूर थी, वह है खेलने का जुनून। यही वह चीज है जो उनको गली से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाई।
शादाब इतनी ऊंचाई तक पहुंचने के बावजूद अब भी जमीन से जुडे़ हैं। उन्होंने पाकिस्तान के एआरवाई न्यूज चैनल को दिए एक इंटरव्यू में अपनी जिंदगी के तमाम पक्षों को खुलासा किया। इस दौरान उन्होंने बताया कि एक बार किसी ने उनसे कोविड के दौर के बारे में पूछा तो वे बोले कि इतने टेस्ट हो चुके हैं कि अब खर्राटे भी नहीं आते हैं।
शादाब के क्रिकेट में एग्रेसिव होकर खेलने के पीछे एक बड़ा राज छिपा है। उन्होंने बताया कि अमूमन ईद की नमाज के बाद वे दोस्तों के साथ पिस्टल लेकर निकलते थे और मुकाबला करते थे। इस लड़ाई में हार जीत का पैमाना यह था कि दूसरा पक्ष डर कर मैदान छोड़कर भाग जाए। शादाब ने बताया कि पिस्टल आर्टिफिशियल होती थी और उसके कारतूस भी नकली थे, लेकिन वे लगते बहुत जोर से थे।
लड़ाई वे पूरी तरह से आक्रामक होकर ही करते थे। कई बार गोलियां खत्म हो जाने के बाद वे पत्थर भी मारते थे। इस दौरान चोटें भी लगती थीं, लेकिन बचपन का यह सिलसिला अभी तक बंद नहीं हुआ है। शादाब ने बताया कि इस तरह के खेल की वजह से ही वह इतने कम्पीटिटिव हैं और अंत तक जूझते रहते हैं।
शादाब ईद के दूसरे-तीसरे दिन हमेशा से दोस्तों के साथ नहर में जाते हैं और वहां जमकर नहाते हैं। वहीं खाना वगैरह बनता है और पूरे दिन वहीं इंजाय करते हैं।