1983-84 में वेस्टइंडीज की टीम भारत आई थी। इस दौरान भारत की ओर से एक उभरता हुआ क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को पहली बार अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के लिए टीम में शामिल किया गया। अहमदाबाद में मैच था। इस मैच में सिद्धू कुछ खास नहीं कर पाये। वह तीन पारी खेलकर केवल 39 रन बना पाये। इससे उनकी बड़ी आलोचना हुई। उन्हें स्ट्रोकलेस वंडर (Strokeless Wonder) कहा गया। ऐसी बातें सुनकर सिद्धू को काफी निराशा हुई।
हालांकि सिद्धू ने इस आलोचना को पॉजीटिव तरीके से लिया। उन्होंने अपने बारे में इस इमेज को बदलने के लिए जी तोड़ मेहनत शुरू की। उन्होंने तय किया कि वे रन बनाकर दिखाएंगे। इस चैलेंज को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने घर पर 300 छक्के प्रतिदिन मारने की प्रैक्टिस शुरू की। ऐसा एक दिन, दो दिन, तीन दिन नहीं पूरे चार साल तक किया।
इस प्रैक्टिस का नतीजा था कि 1987 के विश्व कप में उनकी टीम में फिर वापसी हुई सिद्धू ने विश्वकप मैच में शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने रन गति में सुधार किया। और इसके बाद उनको एक नया नाम पॉमग्रोव हिटर (Palm Grove Hitter) मिला।
सिद्धू के जीवन में उनके पिता का काफी प्रभाव था। जब सिद्धू हर तरफ से निराश थे, तब पिता ने उनमें जोश भरा था। उन्होंने उनको खेलने के लिए प्रेरित किया और एक असफलता से निराश न होने की सलाह दी। हालांकि दुखद यह रहा कि सिद्धू जब 1987 में टीम इंडिया में दोबारा खेलने का अवसर पाये, उसके पहले ही उनके पिता का 1985 में निधन हो गया। यानी पिता ने उनका वह समय अपनी आंखों से नहीं देखा, जब क्रिकेट में सिद्धू का सितारा बुलंदियों पर पहुंचने लगा।
सिद्धू बाद में कई मैचों में भारत के लिए जिताऊ पारी खेली। हालांकि वह अक्सर अर्धशतक लगाने के बाद आउट हो जाया करते थे। सिद्धू शारीरिक रूप से काफी फिट क्रिकेटर माने जाते थे, लेकिन मैदान पर देर तक नहीं टिकने के चलते कई बार इनको आलोचना का शिकार भी बनाया जाता था।