2004 में लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में युवराज सिंह ने पाकिस्तान के खिलाफ शानदार शतक लगाकर भारतीयों का दिल जीत लिया था। टेस्ट क्रिकेट में युवराज सिंह का यह पहला शतक था। उस समय वह सौरव गांगुली की जगह खेल रहे थे और छठे नंबर पर खेल रहे थे। सौरव गांगुली को चोट लग गई थी और वह भारत गये हुए थे।
जब गांगुली वापस पहुंचे तो दिक्कत यह हो गई थी कि युवराज शतक बना चुके थे और गांगुली को खेलाना बहुत जरूरी था क्योंकि वह कप्तान थे। तब युवराज की जगह बनाने के लिए पार्थिव पटेल को ओपनर भेजा गया था। युवराज सिंह की खासियत यह है कि वह बहुत ही क्लीन स्ट्राइकर रहे हैं।
युवराज सिंह को क्रिकेट विरासत में मिला था। उनके पिता योगराज सिंह खुद क्रिकेटर रहे हैं। वह भारत के लिए एक टेस्ट मैच और छह एक दिवसीय मैच खेल चुके हैं। उन्होंने तय किया था कि युवराज सिंह को एक अच्छा क्रिकेटर बनाकर ही मानेंगे।
- योगराज सिंह के घर के पिछवाड़े में एक बगीचा था। इसे युवराज सिंह की मां शबनम सिह ने बहुत मेहनत से बनवाया था। योगराज सिंह ने उसे पूरा साफ करा दिया और वहां पर छोटा सा क्रिक्रेट पिच बनवा दिया। उस पर वे कई-कई घंटे युवराज को प्रैक्टिस कराते थे। एक तरह से वे खुद ही युवराज के कोच थे। योगराज वैसे तो सरल स्वभाव के थे, लेकिन क्रिकेट कोच के मामले में वे बहुत सख्त थे। कई बार उनकी मां शबनम सिंह गुस्सा भी होती थी, लेकिन योगराज किसी की नहीं सुनते थे। कई-कई बार तो घंटों युवराज को इधर-उधर कहीं जाने ही नहीं देते थे। उनकी मां बोलती थी कि क्या बेटे की जान ले लेंगे। इसी का नतीजा है कि युवराज सिंह शानदार क्रिकेटिंग कैरियर को पूरा कर सके।
युवराज की हिम्मत की हर कोई दाद देता है। वह जिस बीमारी से पीड़ित थे, उसमें हर कोई जीने की उम्मीद छोड़ देता है, लेकिन युवराज ने न सिर्फ खुद को बचाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दोबारा वापसी भी की। वह कैंसर से पीड़ित थे, खून की उल्टियां हो रही थीं, उसके बाद भी वह देश को जिताने के लिए खुद मैदान में चौके-छक्के मार रहे थे।