मध्य प्रदेश के रीवा में एक परिवार बेहद गरीब था। घर का मुखिया बाल काटने की दुकान चलाते थे। किसी तरह घर चल रहा था। बड़ा बेटा आठ साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलने में दिलचस्पी रखने लगा था। हालांकि उसके पास न तो ढंग के बैट थे और न ही अच्छे बॉल ही थे। तमाम दिक्कतों के बाद भी वह क्रिकेट से अपना ध्यान हटा नहीं पा रहा था। इसकी वजह से वह पढ़ाई में भी कोई खास ध्यान नहीं रख पा रहा था। वह खिलाड़ी था कुलदीप सेन, जो अपनी मेहनत से टीम इंडिया का क्रिकेटर बन सका।
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क्रिकेट में रुचि को देखते हुए बहुत कोशिश के बाद वह एक एकेडमी में एडमिशन ले लिये। उनके पास सब कुछ था, योग्यता थी, मेहनत करने का जज्बा था, आगे बढ़ने की उम्मीद थी, लेकिन पैसा नहीं था। उनके जोश और उम्मीद को देखकर कोच ने उनकी फीस माफ कर दी। क्रिकेट खेलने के लिए जिस जूते की जरूरत होती है वह भी नहीं था तो कोच ने उन्हें जूते और किट भी दिलवा दी।
इसके बाद कुलदीप लगातार मेहनत करते रहे। कुलदीप कहते भी हैं कि कोच ने उनकी फीस माफ न की होती तथा जूते और किट न दिलाए होते तो वह कभी क्रिकेटर नहीं बन पाते।
कुलदीप को रणजी टीम में खेलने का अवसर मिला। वे मध्य प्रदेश के लिए रणजी मैच खेले। वह अपने पहले सीजन में 25 विकेट लिये। इसमें पंजाब के खिलाफ एक पारी में पांच विकेट भी शामिल थे। जब रणजी के लिए खेलना शुरू किये तो पहला मैच तमिलनाडू के खिलाफ था, इसमें दो विकेट लिये थे। उसके बाद दूसरा मैच बंगाल से था। फिर पंजाब से मैच में पांच विकेट मिला।
उनकी प्रतिभा देखकर फरवरी 2022 में आईपीएल टूर्नामेंट में उन्हें राजस्थान की टीम ने 20 लाख रुपये में खरीदा था। उनकी पहचान तब और बढ़ी जब लखनऊ की टीम को मैच में 14 रन की जरूरत थी, लेकिन कुलदीप ने ऐसी बॉलिंग की कि लखनऊ की टीम रन नहीं बना सकी। इससे वे चयनकर्ताओं की नजर में आ गये।