क्रुणाल पंड्या को क्रिकेटर बनाने में दो लोगों का शुरुआती रोल बड़ा अहम रहा। एक तो उनके पिता और दूसरे किरण मोरे के तत्कालीन मैनेजर मिस्टर बरार। सूरत में घर के गलियारे में पिता खुद क्रुणाल को गेंदें डालते थे। तब क्रुणाल बस छह साल के थे। उसी समय बेटे का खेल देख कर पिता ने भांप लिया था कि इसमें बड़ा क्रिकेटर बनने का दम है।
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घर के गलियारे से राणदेर जिमखाना में प्रैक्टिस का सिलसिला शुरू हुआ। वहां एक बार मैच था। मैच देखने के लिए किरण मोरे के मैनेजर मिस्टर बरार भी आए हुए थे। उन्होंने क्रुणाल को बैटिंग करते देखा। क्रुणाल की बैटिंग देखने के बाद उन्होंने उनके पिता से कहा कि बच्चे में काफी पोटेंशियल है, इसे लेकर वड़ोदरा (बड़ौदा) आइए। इसके 10-15 दिन बाद ही क्रुणाल के पिता उन्हें लेकर वड़ोदरा गए और किरण मोरे एकेडमी में दाखिल करवा दिया।
इस तरह क्रुणाल के क्रिकेटर बनने की असली यात्रा शुरू हुई। फिर उनके पिता बाइक पर दोनों बेटों (क्रुणाल और हार्दिक) को 50 किलोमीटर वड़ोदरा से नांदियाड कॉलेज ग्राउंड ले जाते थे खेलाने के लिए।
वहां कॉलेज के लड़कों से बॉल डालने के लिए कहते। साथ में यह भी कहते कि क्रुणाल को आउट करो और आउट कर दोगे तो सौ रुपए मिलेंगे। उस समय क्रुणाल की उम्र दस साल से ज्यादा नहीं थी। फिर भी कॉलेज के लड़के उन्हें डेढ़-दो घंटे में भी आउट नहीं कर पाते थे।
हालांकि, 13 साल की उम्र के बाद क्रुणाल का खेल खराब होने लग गया। आठ-दस साल तक वह कुछ खास नहीं कर पा रहे थे। 22-23 साल की उम्र आते-आते उनका धैर्य जवाब दे गया। एक मैच के बाद आकर वह रोने लगे। यह सोच कर कि माता-पिता के त्याग का कोई बदला नहीं दे सका अब तक। उस दिन उन्होंने तय किया कि अच्छा क्रिकेटर बनने की छोड़ो, अच्छा इंसान बनना है। यह सोच आते ही क्रिकेट में भी बदलाव दिखने लगा और उनका क्रिकेट भी बेहतर होने लगा।
इसी बीच उन्हें एक नौकरी का ऑफर आया। और, उसी समय मुश्ताक अली टूर्नामेंट का ट्रायल देने का भी मौका था। क्रुणाल ने तय किया कि बचपन से इतनी मेहनत नौकरी करने के लिए तो नहीं की है। उन्होंने ऑफर लेटर फाड़ दिया और मुश्ताक अली टूर्नामेंट का ट्रायल देने का फैसला किया। वहीं से उनकी गाड़ी चल निकली।