भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता काफी अधिक है। देश के उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों को छोड़कर करीब-करीब सभी राज्यों में यह खेला जाता है। दक्षिण के राज्य केरल के कई क्रिकेटरों ने भारतीय टीम में अपना योगदान दिया है। उन्हीं में से एक हैं टीनू योहानन। टीनू एक ऐसे क्रिकेटर रहे हैं, जिनको अपनी क्रिकेट यात्रा के दौरान कई तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा। 3 दिसंबर, 2001 को, टीनू योहानन को जब भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलने का अवसर मिला तो वे अपने प्रदेश से टीम इंडिया के लिए खेलने वाले पहले खिलाड़ी बने।
वैसे केरल में क्रिकेट पारंपरिक रूप से कम खेला जाता है। इस कारण केरल में बुनियादी ढांचे की काफी कमी है। एक मजबूत क्रिकेट संस्कृति वाले राज्यों के विपरीत, केरल के पास सीमित संसाधन और उच्च गुणवत्ता वाली कोचिंग और प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं।
इंफ्रास्ट्रक्चर से उत्पन्न चुनौतियों के अलावा, योहानन अपने करियर के महत्वपूर्ण चरणों के दौरान चोटों से भी जूझते रहे। इन असफलताओं ने अक्सर उनकी लय को बाधित किया और उनकी प्रगति में बाधा डाली। एक तेज गेंदबाज के रूप में अपनी अपार क्षमता के बावजूद, योहानन बार-बार लगने वाली चोटों के कारण लगातार प्रदर्शन बनाए रखने के लिए संघर्ष करते रहे। इससे उनके सामने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आगे बढ़ने में दिक्कतें आईं।
इसके अलावा, भारतीय क्रिकेट प्रणाली के भीतर प्रतिस्पर्धा ने ही योहानन के लिए चुनौतियां खड़ी कर दीं। राष्ट्रीय टीम में जगह पाने के लिए ढेर सारे प्रतिभाशाली तेज गेंदबाजों के साथ, उन्हें कड़ी चुनौतियां मिलती रहीं। भारतीय टीम में नियमित स्थान हासिल करने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा।
अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शानदार शुरुआत के बावजूद, योहानन ने भारत के लिए केवल तीन एकदिवसीय मैच खेले। इससे खुद को स्थापित करने के लिए उनके सामने मौके कम ही आए। योहानन के बारे में बताया जाता है कि वे निराशा में डूब जाते थे, तब उनके साथी उनसे आगे आने और चुनौतियों का पूरे विश्वास के साथ सामना करने का जोश भरते थे। इससे वे फिर उत्साहित हो जाते थे।
पंजाब के मोहाली के पीसीए स्टेडियम में अपना पहला टेस्ट मैच इंग्लैंड के खिलाफ खेलते हुए चौथी गेंद पर अपना पहला विकेट मार्क बुचर को आउट करके लिया।