भारतीय क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण (VVS Laxman) बड़े ही जुझारू और काम के प्रति जिद्दी स्वभाव के खिलाड़ी रहे हैं। वह जो चीज तय करते हैं उसके लिए जी जान से जुट जाते हैं। दुर्भाग्य से वे हमेशा टेस्ट टीम के ही खिलाड़ी माने गये, उन्हें कभी भी वनडे टीम में नियमित खिलाड़ी के तौर पर नहीं रखा गया। इससे बड़ी बात यह है कि उन्हें कभी भी विश्व कप मैच में नहीं लिया गया।
अपने क्रिकेट कैरियर में यह उनके लिये बेहद दुखी करने वाला क्षण रहता था। उन्होंने कई बार इसको सार्वजनिक तौर पर जताया है। अपनी किताब “281 बियॉन्ड” में उन्होंने इसका जिक्र किया है। भारत के लिए उपयोगी बल्लेबाजी कौशल और रन बनाकर देश को जिताने के कई मौके पर उन्होंने खुद को साबित किया है, लेकिन फिर भी उन्हें विश्व कप नहीं लिया गया। एक बार तो वे दुखी होकर क्रिकेट से संन्यास लेने का मन बना चुके थे। हालांकि मित्रों के कहने पर उन्होंने अपना फैसला बदल लिया।
उनको हमेशा एक टेस्ट मैच विशेषज्ञ के रूप में माना गया। सीमित ओवरों की टीम के वे नियमित सदस्य नहीं थे। उनका एक सफल टेस्ट करियर था, जो उनकी शानदार बल्लेबाजी शैली और भारत को कठिन परिस्थितियों से उबारने की क्षमता के लिए जाना जाता था।
उनकी सबसे उल्लेखनीय पारी 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कोलकाता टेस्ट में थी, जहां उन्होंने 281 रनों की शानदार पारी खेलकर मैच को भारत के पक्ष में मोड़ दिया। इस पारी को अक्सर क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी वापसी में से एक माना जाता है।
अपनी किताब में लक्ष्मण ने लिखा कि उस पारी के बाद टीम इंडिया को यह विश्वास होना शुरू हुआ कि हम चाहे किसी भी परिस्थिति में हों वापसी कर सकते हैं। जब तक आखिरी रन या आखिरी विकेट नहीं गिर जाता तब तक हम अपनी उम्मीदें नहीं छोड़ेंगे। आक्रामक रवैया ने हमें सिखाया कि हम किसी भी टीम के खिलाफ अच्छा कर सकते हैं। इसके बाद लक्ष्मण भारतीय टीम का एक जरूरी हिस्सा बन गये। वह अपनी किताब 281 बियांड में लिखा है।