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पृथ्‍वी शॉ को सेंचुरी लगाने पर ब्रेड टोस्‍ट म‍िलता था ‘ईनाम’

cricketstruggleofprithvishawcricketiya.com

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पृथ्‍वी शॉ आज क्र‍िकेट में चमक गए हैं। उन्‍हें चमकाने के पीछे उनके पापा की जबरदस्‍त मेहनत और त्‍याग है। उन्‍होंने बेटे को बचपन में ही आंक ल‍िया था।
तीन साल की उम्र में पृथ्‍वी ने प्लास्टिक बैट बॉल से खेलने की शुरुआत की थी। तभी उनके पापा को लग गया था क‍ि आगे चल कर यह नामी क्र‍िकेटर बन सकता है। और, उन्‍होंने बेटे के पीछे मेहनत शुरू कर दी थी।

चार बजे सुबह जगकर फील्ड पर जाना आदत बन गयी थी जैसे। उन्हें सुबह उठना बिल्कुल पसंद नहीं था, फ‍िर भी। इस मेहनत का नतीजा रहा क‍ि आठ साल की उम्र में ही पृथ्‍वी को खेलते देखने के ल‍िए सच‍िन तेंदुलकर एमआईजी क्रिकेट क्लब गए थे।

शॉ को सचिन अपना बल्ला देकर आए थे। पृथ्वी ने तब तक वैसा बल्ला देखा भी नहीं था। कभी सचिन ने पृथ्वी के पिता से कहा था क‍ि जब ये मैच खेले तो आप थोड़े दूर खड़े रहो, ताक‍ि आपको देख कर इसका कॉन्‍फ‍िडेंस नहीं ह‍िले। पृथ्वी पर पिता पूरी नजर रखते थे। मैदान पर भी और बाहर भी। शायद तभी सच‍िन ने उनसे दूर रह कर बेटे का खेल देखने की गुजार‍िश की थी।

8 साल की उम्र में ही अंडर 14 में पहली बार पृथ्‍वी का चयन हुआ था। वड़ोदरा में मैच था। पहली बार पृथ्‍वी मुंबई के बाहर निकले थे। तभी उन्हें लगा क‍ि अगर मैं अच्छा खेलूंगा तो बाहर भी जा सकता हूं। बाहर जाना उनका शौक भी है। वह सोचते हैं क‍ि ब‍िना वीजा कहीं भी जाने का मौका म‍िले तो क‍ितना अच्‍छा हो।

पृथ्‍वी मुंबई के विरार में पिता के साथ अकेले रहते थे। पापा के हाथों बने रोटी-घी-नमक से दिन की शुरुआत होती थी। पापा के पास भाजी बनाने का टाइम नहीं होता था और रोटी-घी पृथ्वी के गले से उतरता नहीं था। फिर भी वह बिना कुछ बोले खा लेते थे। मैच में अच्छा रन बनाने पर या सेंचुरी लगाने पर पापा उन्हें ब्रेड टोस्ट खिलाते थे। वैसे, पृथ्‍वी को मुंबई के विरार का खाना बहुत पसंद है। उन्हें नाश्ते में मिसल पाव, लंच में प्रॉन्स, स्नैक्स में पानी पूरी और रात के खाने में चाईनीज बहुत पसंद है।

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