Indian cricket team player R. Ashwin's family life and strugglecricketiya.com
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प‍िता कहते- क्र‍िकेटर बनना है, मां बोलतीं- इंजीन‍ियर बनो, दादा धमकाते- क्र‍िकेट खेला तो खाना नहीं दूंगा

क्र‍िकेटर आर. अश्‍व‍िन (R. Ashwin – Ravichandran Ashwin) के प‍िता एन रव‍िचंद्रन खुद अच्‍छा क्र‍िकेट खेलते थे। इतना अच्‍छा क‍ि उनकी मां ने एक इंटरव्‍यू में कहा था क‍ि अगर मेरे पत‍ि क्र‍िकेट खेलना छोड़ते नहीं तो इंड‍िया के ल‍िए खेले होते। आर. अश्‍व‍िन ने प‍िता की शोहबत में ही क्र‍िकेट में द‍िलचस्‍पी लेना शुरू क‍िया और धीरे-धीरे द‍िलचस्‍पी जुनून में बदल गई।

उनके प‍िता जब क्र‍िकेट खेलने जाते तो वह साथ जाते थे। क्र‍िकेट के प्रत‍ि अश्‍व‍िन का लगाव यहीं से शुरू हुआ था। उनके घर के पीछे उनकी बुआ का घर था। जब वह अपने घर से बुआ के घर जाते तो वह हाथ में कोई पत्‍थर उठा लेते और गेंद की तरह फेंकते थे।

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प‍िता ने भांप ल‍िया था क‍ि क्र‍िकेट में बेटे की द‍िलचस्‍पी जुनून में बदल रही है। इस जुनून को उन्‍होंने द‍िशा देनी शुरू की। रोज सुबह साढ़े पांच बजे जगा कर बेटे को प्रैक्‍ट‍िस पर भेजते। अश्‍व‍िन कभी-कभी अंदर से कुढ़ भी जाते। लेक‍िन, प‍िता उन्‍हें रूटीन में ढ‍िलाई नहीं बरतने देते। उधर, मां चाहतीं क‍ि बेटा पढ़-ल‍िख कर इंजीन‍ियर बने।

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मां-बाप पर इस बात का दबाव था क‍ि पढ़ाई में अच्‍छा नहीं क‍िया तो र‍िश्‍तेदार कोसेंगे। इसल‍िए, अश्‍व‍िन को पढ़ाई में भी ढ‍िलाई की छूट नहीं थी। असल में अश्‍व‍िन के पर‍िवार-र‍िश्‍तेदार में ऐसा कोई नहीं था ज‍िसने पढ़ाई को नजरअंदाज कर क‍िसी और चीज में कॅर‍िअर बनाया हो। इसल‍िए माता-प‍िता नहीं चाहते थे क‍ि उसकी पढ़ाई में ढ‍िलाई हो।

अश्‍व‍िन के दादा तो उनके क्र‍िकेट खेलने के सख्‍त ख‍िलाफ थे। वह खाने की मेज पर अश्‍व‍िन को यहां तक कह देते थे क‍ि यह कोई कॅर‍िअर बनाने की चीज नहीं है, मैं तुम्‍हारे प्‍लेट में खाना नहीं डालूंगा।

इन पर‍िस्‍थ‍ित‍ियों में क्र‍िकेटर बनने की जंग जारी रही। अश्‍व‍िन मेहनत खूब कर रहे थे। पल भर की फुर्सत नहीं थी। सुबह से रात और फ‍िर सुबह से रात…। रोज एक सा रूटीन। लेक‍िन, ब‍िना क‍िसी ठोस डायरेक्‍शन के।

अश्‍व‍िन जब 14 साल के हुए, यानी अंडर 14 में खेलने का उनका आख‍िरी साल था तो एक मैच में उन्‍हें मौका म‍िला। कर्नाटक की ओर से चेन्‍नई में खेलने गए वह। पहली पारी में शून्‍य। दूसरी में भी शून्‍य। साथ में चोट भी लग गई। इसके बाद उन्‍हें एक च‍िट्ठी थमा दी गई, ज‍िसमें ल‍िखा था क‍ि अगले मैच में आपको टीम में नहीं ल‍िया जा रहा है।

इस इनकार ने अश्‍व‍िन को तोड़ कर रख द‍िया। वह मां की गोद में सर रख कर रोने लगे। मां ने कहा- तुम हर च‍िंता छोड़ कर अपना क्र‍िकेट खेलते रहो। कहीं कुछ नहीं होता है तो भी खेलते रहो।

वेंकट नटराजन खेल पत्रकार हैं। क्रिकेट में इनकी ना केवल रुचि है, बल्कि यह क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी भी रह चुके हैं। क्रिकेट से जुड़े क़िस्से लिखने के अलावा वेंकट क्रिकेट Match Live Update, Cricket News in Hindi कवर करने में भी माहिर हैं।