रवि शास्त्री (Ravi Shastri) वेस्टइंडीज (West Indies) के महान आलराउंडर गैरी सोबर्स (Sir Garfield Sobers) के इतने दीवाने थे कि जब वह 1983 में पहली बार उनसे मिले तो उनकी आवाज ही बंद हो गई थी। शास्त्री समझ नहीं पा रहे थे कि क्या बोले और कैसे बात करें। वह हक्का-बक्का थे। जिस क्रिकेटर को वे दस साल की उम्र से अपना आदर्श मानते थे, वह आज उनके सामने खड़ा था।
दोनों क्रिकेटरों में उम्र का लंबा फासला था
शास्त्री और सोबर्स में उम्र का भी काफी अंतर था। सोबर्स क्रिकेट की दुनिया में काफी नामी और सीनियर प्लेयर थे, जबकि रवि शास्त्री शुरुआत ही कर रहे थे। इससे उनके बीच पहली मुलाकात में इस तरह का चकित होना स्वाभाविक था। गैरी सोबर्स इस बात को अच्छी तरह समझते थे। उन्होंने रवि शास्त्री की घबराहट को दूर करने के लिए अपनी ओर से ही बात शुरू कर दी और उनको खेल के लिए जरूरी टिप्स दिये।
उन्होंने मैदान में एक खिलाड़ी के रूप में शास्त्री के विकास के लिए जो सबसे अहम बात कही वह था- ‘डोंट अंडरएस्टीमेट योरसेल्फ, नो मैटर द रेपुटेशन ऑफ द अपोनेंट’
शास्त्री अपने सीनियर्स के प्रति काफी विनम्र रहते हैं और उनसे अक्सर सीखने की कोशिश करते हैं। खिलाड़ी चाहे अपने देश के हों या विदेशी हों, उनसे कुछ न कुछ अच्छी चीजें ले ही लेते हैं।
Also Read: रवि जब 10 साल के थे, तब पिता उन्हें यह कहकर चिढ़ाते थे, जानें वह किस्सा
भारत के पूर्व कप्तान और महान खिलाड़ी मंसूर अली खान पटौदी को शास्त्री काफी पसंद करते थे। शास्त्री पटौदी के स्वभाव और करिश्माई व्यक्तित्व, उनके तेज और चीजों को जल्द पकड़ने वाले शार्प ब्रेन, लीक से हटकर सोचने, युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने वाली प्रतिभा और किसी भी तरह के संदेह को गलत साबित करने की क्षमता से बहुत प्रभावित थे।
अपनी किताब में शास्त्री लिखते हैं, “लोग सोचते थे कि वह अलग-थलग और रिजर्व व्यक्ति की तरह रहते हैं, जबकि सच यह है कि वह बहुत खुशमिजाज इंसान थे। एक महान कहानीकार के साथ खुद में हास्य की भावना रखते थे। वह मेरी शाम को उन कुछ लोगों की तरह जीवंत बनाते थे, जिनसे मैं मिला हूं।”