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जब पांच साल के हार्द‍िक पांड्या की बैट‍िंंग देख घूम गया था क‍िरण मोरे का माथा, बदलना पड़ गया था क्र‍िकेट एकेडमी का न‍ियम  

Hardik Pandya | Kiran More |

भारतीय क्रिकेट टीम के सीनियर प्लेयर हार्दिक पांड्या। (फोटो- फेसबुक)

यह कहानी गुजरात के शहर वडोदरा से शुरू होती है। टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपर किरण मोरे अपनी क्रिकेट एकेडमी में बैठे हुए थे। तभी हिमांशु नाम का एक शख्स दो बच्चों के साथ वहां पहुंचता है। बच्‍चों में से एक की उम्र 7 और दूसरे की पांच साल थी। बड़े बच्‍चे का नाम था कुणाल और छोटे का हार्द‍िक पांड्या। हिमांशु ने क‍िरण मोरे से कहा कि वह दोनों बच्चों का एकेडमी में दाखिला करवाने आए हैं। मोरे ने एक नजर ह‍िमांशु को देखा और फ‍िर उनके दोनों बच्‍चों को।

एकेडमी में दाखिले के लिए न्यूनतम उम्र 12 साल थी

मोरे समझ नहीं पा रहे थे क‍ि बच्‍चों के प‍िता को क्‍या जवाब दें। उन्‍होंने एक बार फ‍िर दोनों बच्‍चों को देखा और ह‍िमांशु से कहा- नहीं हो सकता। असल में, एकेडमी में दाख‍िले के ल‍िए उन्‍होंने न्यूनतम उम्र 12 साल तय कर रखी थी।

एक बार बच्चों से बैटिंग करवा कर देख लेने पर अड़े रहे पिता

मोरे के इनकार के बाद भी बच्चों के पिता जिद पर अड़े रहे। उनकी जिद में जुनून और आत्मविश्वास की झलक साफ द‍िख रही थी। उन्होंने कहा -आप एक बार बच्चों से बैटिंग करवा कर तो देख लीजिए। मोरे ने हल्‍के में ल‍िया और टालने के मकसद से मजाक में एक कोच से कहा कि इन बच्चों के सामने कुछ गेंदें फेंक कर देख ले। जब बच्चों के आगे गेंदें फेंकी गई तो उन्‍होंने जो बल्ला चलाया उसे देखकर किरण मोरे का द‍िमाग घूम गया। उन्‍हें अपनी अकादमी के लिए बनाया गया नियम तोड़ना पड़ा और दोनों बच्चों को दाखिला देने का फैसला लेना पड़ा।

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1999 में अकादमी में बेटों का दाख‍िला कराने के बाद ह‍िमांशु रहने के ल‍िए सूरत से वड़ोदरा आ गए। पैसों की द‍िक्‍कत थी। सो, ह‍िमांशु ने कार फाइनेंस का छोटा-मोटा काम शुरू क‍िया। पैसे उतने नहीं आते थे क‍ि क्र‍िकेट की ट्रेन‍िंंग के साथ-साथ ज‍िंंदगी की जरूरतें भी आराम से पूरी की जा सकें। लेकिन उन्होंने बेटों को क्रिकेटर बनाने के फैसले से कोई समझौता नहीं करने की ठान ली थी।

मैगी खा कर द‍िन ब‍िताने को मजबूर हो गये थे हार्दिक और कुणाल

कई बार ऐसा हुआ जब हार्दिक और कुणाल मैगी खा कर द‍िन ब‍िता देते थे। हार्द‍िक तो नौंवी के बाद पढ़ाई भी नहीं कर सके। लेक‍िन, करीब एक दशक बाद ही क्र‍िकेट की दुन‍िया में उनका अच्‍छा नाम होने लगा था। कुणाल भी रणजी खेलने लगे थे।

दोनों भाई क्र‍िकेट में पैर जमा ही रहे थे क‍ि उनके पिता को तीन-तीन बार दिल का दौरा पड़ा। इसके बाद उनके लिए काम कर पाना संभव नहीं था। उन्हें काम छोड़ना पड़ा। परिवार के इकलौते कमाने वाले सदस्‍य ने बिस्तर पकड़ लिया।

हार्दिक बहुत कम समय तक स्कूली पढ़ाई की, लेकिन अंग्रेजी फर्राटेदार बोलते हैं

इन संघर्षों को देखते और इनसे जूझते हुए हार्दिक और कुणाल ने अपने क्रिकेट खेलने के हुनर को धार दी। मुंबई में ड्रेस‍िंंग रूम में हार्दिक पांड्या का नाम ‘रॉकस्टार’ पड़ गया थाा। वह जिस स्टाइल से क्रिकेट खेलते थे, उनका पहनावा भी उसी शानदार स्टाइल का होता था। हार्दिक ने स्कूल की पढ़ाई भी पूरी नहीं की, लेक‍िन उनकी फर्राटेदार अंग्रेजी सुन कर यह कोई नहीं कह सकता कि उन्होंने पढ़ाई नहीं की है।

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