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Sourav Ganguly: मैं इस सोच के साथ नहीं रह सकता कि संकट के वक्त मैंने भरपूर प्रयास नहीं किए, दादा ने ऐसे किया मुश्किलों का सामना

Sourav Ganguly | Team India | BCCI |

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान, बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष सौरव गांगुली। (फोटो- फेसबुक)

Sourav Ganguly: भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली अपने जीवन में अपने पिता से काफी प्रभावित रहे हैं। पिता-पुत्र के इस रिश्ते में परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा अपनापन ज्यादा था। अपनी ऑटोबॉयग्राफी ‘अ सेंचुरी इज नॉट इनफ’ (A Century Is Not Enough) में गांगुली लिखते हैं कि उनके पिता आम तौर पर उनके पेशेवर जिंदगी पर बातें नहीं करते थे। लेकिन जब गांगुली टीम से निकाल दिये गये थे और उनके सामने गंभीर संकट की स्थिति आ गई थी, तब एक दिन उनके पिता उनके पास आए और एक अखबार की रिपोर्ट दिखाये।

अखबार में छपा था कि क्रिकेट में वापसी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद

रिपोर्ट में लिखा था कि वेस्टइंडीज में भारतीय टीम की एक दिवसीय सीरीज जीतने के बाद सौरव के लिए क्रिकेट में वापसी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए। पहले से निराशा में डूबे किसी क्रिकेटर के लिए इससे बड़ा झटका क्या होगा। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सौरव इससे निराश होने के बजाए इसको पॉजिटिव तरीके से लिये और तय किया कि हार नहीं मानेंगे।

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सौरव ने क्रिकेट को लेकर अपने पिता से लंबी बातचीत की। सौरव ने महसूस किया कि वह अपने किशोरावस्था में पहुंच गये हैं। सौरव अपने पिता को अपना गुरु मानते थे। जब भी भारत कोई मैच जीतता था, उनके पिता को लगता था कि टीम में सौरव के कमबैक करने के चांस कम हो जाते थे। अखबार की रिपोर्ट पढ़ने के बाद पिता ने सौरव से कहा था कि “महाराज आपने बहुत कुछ हासिल किया है।

आप गर्व के साथ संन्यास क्यों नहीं ले लेते?” वह बेहद चिंतित और दुखी थे। सौरव लिखते हैं कि इससे मुझे और भी अधिक बेबसी महसूस हुई। सौरव ने कहा कि उस दिन उनके पिता ने वह बात कही, जिसे वह कह नहीं पा रहे थे। उन्होंने कहा, “महाराज विश्वास करें, मुझे आपके लिए कोई जगह नहीं दिख रही है। दुख की बात है कि कोई उम्मीद नहीं है।”

सौरव गांगुली ने कहा, “यह पिता और बेटे के बीच बहुत ही भावुक बातचीत थी। मेरे पिता अब दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि मैंने उन्हें क्या बताया था। मैंने कहा कोई भी हमेशा खेलते नहीं रह सकता। सर्वकालिक महान खिलाड़ी चाहे वह माराडोना हों, संप्रास हों या गावस्कर हर कोई किसी न किसी को एक दिन रुकना होता है। मुझे पता है कि देर-सबेर मुझे भी रुकना होगा। लेकिन मैं इस सोच के साथ नहीं रह सकता कि संकट के वक्त मैंने भरपूर प्रयास नहीं किए।”

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