क्रिकेटर दीपक चाहर (Deepak Chahar) पहलवान पिता के बेटे हैं। दीपक के दादा अपने बेटे का कॅरिअर पहलवानी में बनाना चाहते थे। इसमें बेटे को काफी आगे भी बढ़ाया, लेकिन बेटे ने समझ लिया कि पहलवानी में कॅरिअर नहींं बन सकता। तब वह फौज में चले गए। लेकिन उन्होंने अपने बेटे (दीपक) के लिए तय कर लिया था कि यह क्रिकेट में ही कॅरिअर बनाएगा।
दीपक चाहर बताते हैं कि दादाजी के कहने पर उनके पिताजी कई बार पहलवानी कर चुके थे। कुश्ती के करीब 200 मुकाबलों में उन्होंने अपने विरोधियों को धूल चटाई थी। फिर उन्हें लगा कि इस खेल में ज्यादा कुछ है नहीं तो उन्होंने आर्मी ज्वाइन कर ली।
पहलवानी के दौर में दीपक के पिताजी सौ बादाम खाते और तीन लीटर दूध पी लेते थे। जबरदस्त मेहनत करके सब पचा लेते थे। उस टाइम पे गांव का माहौल ऐसा था कि सुबह के दस बजे से शाम के चार बजे तक लोग पत्ते ही खेला करते थे। लेकिन, उनके पिताजी हर दूसरे दिन दस किलोमीटर दौड़ते थे। स्कूल जाते थे, वर्जिश करते थे। हालत यह थी कि जिस दिन पिताजी आराम करते थे उस दिन उनकी तबीयत बिगड़ जाती थी।
दीपक जब 12 साल के थे तभी पिताजी ने क्रिकेट में उनकी दिलचस्पी देखते हुए उनमें भविष्य का बड़ा क्रिकेटर देख लिया था। उन्होंने उनके लिए खुद से पिच बनाई। रोलर का काम बैट से लिया। बैट के पिछले हिस्से से पिच को बराबर करते थे और बेटे को क्रिकेट खेलवाते थे। दीपक को क्रिकेट सिखाने के लिए पिताजी ने कई किताबें भी पढ़ीं।
दीपक 2023 आईपीएल में विजेता टीम चेन्नई सुपर किंंग्स (सीएसके) के खिलाड़ी रहे और महेंद्र सिंंह धौनी के करीब रह कर खेले। इसका उन्हें काफी फायदा हुआ। दीपक बताते हैं कि टीम का माहौल ही ऐसा है कि किसी तरह का कोई प्रेशर नहीं है। आपकी जो मर्जी है, आप वो करो। कोई ये नहीं कहता कि आप प्रैक्टिस करो या जिम करो। आप खुद एक प्रोफेशनल क्रिकेटर हो (इसलिए जिम्मेवारी भी आपकी है। आपको मैदान पर अपना परफॉरमेंस देना है।
दीपक के कप्तान महेंद्र सिंंह धौनी हैं। कप्तान के बारे में वह बताते हैं कि 2017 में 12वें नंबर पर रहने के कारण एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिलने के बावजूद 2018 में धौनी ने उन पर भरोसा किया और टीम में रखा। कप्तान धौनी की ही तरह दीपक भी बिजनेस करना चाहते हैं। उनका मानना है कि बारह साल की उम्र से दिन-रात क्रिकेट ही देखा है तो कुछ अलग करने की चाहत है।