भारत में क्रिकेट केवल लोकप्रिय खेल ही नहीं है, बल्कि यहां लोग क्रिकेट में ही जीते हैं। यशवंत प्रभाकर उर्फ बाबा सिधाये (Yashwant Prabhakar alias Baba Sidhaye) एक ऐसे खिलाड़ी थे जो न बोल सकते थे और न ही सुन सकते थे। उनकी ये शारीरिक दिक्कतें उनके क्रिकेट के प्रेम को कभी कम नहीं कर सकीं। वह न केवल खेल, बल्कि क्रिकेट की दुनिया में भी नाम भी कमाया।
बाबा सिधाये बहुत मेहनती थे। शुरू-शुरू में लोग उनसे दूर रहते थे, उन्हें अपने साथ नहीं खिलाते थे। उनके समय में टेस्ट क्रिकेट का जाना माना नाम सदाशिव गणपतराव शिंदे (Sadashiv Ganpatrao Shinde) ने एक दिन पुणे के डेक्कन जिमखाना में उनको खेलते हुए देखा तो देखते ही रहे। उन्हें लगा कि यह बल्लेबाज कोई साधारण लड़का नहीं है। शिंदे उनके पास गये और उनसे कहा कि कोई एक खेल को चुन लो और उसमें जी जान लेकर जुट जाओ।
उसके बाद सिधाये बिना इसकी चिंता किए कि उनमें शारीरिक कमियां है, उन्होंने अपना पूरा फोकस खेलने पर ही किया और आगे ही बढ़ते रहे।
मरीन लाइन्स में पीजे हिंदू जिमखाना में एक बार बैटिंग करते हुए उन्होंने छक्का मारा तो बाल जाकर अरब सागर में गिरी। उनके नाम एक बड़ा रिकार्ड 59 मिनट में शतक लगाने का है। जिस दौर में वे खेल रहे थे, तब यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी मैचों में पांच बार दोहरा शतक लगाया था।
उनकी बल्लेबाजी में आक्रामकता थी। वह जब बल्लेबाजी करते थे तो उनके बैट की नजर सीधे बाल पर होती थी और बैट से टकराने के बाद बाल इतनी दूर जाती थी कि फिल्डिंग करने वाला दौड़ते-दौड़ते ही हांफने लगता था।
उन्होंने अपना पहला रणजी मैच 1949 में खेला था। वे दाहिने हाथ के मध्य क्रम के बल्लेबाज थे और महाराष्ट्र, मुंबई और रेलवे के लिए 42 रणजी मैच खेले। इसके अलावा उन्होंने पश्चिम और उत्तर क्षेत्र से कई बार प्रतिष्ठित दलीप ट्रॉफी खेली थी। उन्होंने स्टेट और डिवीजन टीमों के रूप में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और वेस्ट इंडीज जैसी टीमों के खिलाफ मैच खेले।
उनका क्रिकेट कैरियर 17 साल (1949 से 1966 तक) का रहा। इस दौरान वे एक बल्लेबाज, उप कप्तान और कप्तान के रूप में अपनी प्रतिभा से तत्कालीन क्रिकेट दर्शकों को मुग्ध करते रहे। बाद में वे एक कोच के रूप में सामान्य और शारीरिक रूप से अक्षम दोनों तरह के बच्चों को कोचिंग देते रहे।
उन्होंने रणजी खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया। उनसे ट्रेनिंग लेने वाले खिलाड़ी बलविंदर सिंह संधू 1983 की कपिल देव के नेतृत्व वाली विश्व कप विजेता भारतीय टीम में थे।