विरेंदर सहवाग (Virender Sehwag) का शुरुआती जीवन अलग तरह का था। वे जब छोटे थे तब सुबह दिल्ली के नजफगढ़ से सुबह 5.40 की बस पकड़ते थे। बस एकदम समय से आती थी। 5.41 पर भी पहुंचे तो बस छूटनी तय थी। सहवाग 5.30 बजे ही स्टॉप पर पहुंच जाते थे। थोड़ा पहले पहुंचने से यह था कि सीट नहीं मिलने के चांस नहीं रहते थे। बस हर स्टैंड पर रुकते-रुकते जाती थी। साढ़े सात बजे स्कूल पहुंचना होता था। इसके पहले सहवाग मैदान पर कुछ देर प्रैक्टिस कर लेते थे और फिर वहीं पर कपड़े चेंज कर स्कूल ड्रेस पहन लेते थे। इस तरह वह स्कूल में समय से पहुंच जाते थे।
ब्रेकफास्ट विद चैंपियन शो में गौरव कपूर से सहवाग ने कहा कि आशीष नेहरा के साथ स्कूल के समय से ही खेलते थे। जब वह फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेले, तब एक स्कूटर खरीदे और फिर स्कूटर से दोनों लोग जाने लगे। यह रोज का नियम बन गया। तब रास्ता बदल गया और दिल्ली कैंट होकर जाने शुरू कर दिये। पहले मोती नगर, वहां से कनॉट प्लेस, वहां से आईटीओ होते हुए तिलक नगर, दिल्ली कैंट, धौला कुंआ, तीन मूर्ति अकबर रोड फिर फिरोज शाह कोटला पहुंचते थे।
सहवाग बताये कि उनके पिता के पांच बड़े भाई थे। सबके चार-चार, पांच-पांच बच्चे थे। घर में आठ-दस भैंसें थी और दो गाएं थीं। सबके दूध उनकी मां और ग्वाले आकर निकालते थे। वह दूध सबमें बंटता था। लेकिन इसके पहले ही उनकी मां एक जग दूध सहवाग को दे देती थीं। ऐसा नहीं करने पर बहुत कम दूध उनके हिस्से में बचता था। सहवाग की मां पहले दूध से मक्खन निकालती थीं, फिर मलाई से देसी घी बनाती थीं। फिर पनीर और दही बनाती थीं।
सहवाग ने कहा अपने गाय-भैंस का दूध इतना प्योर होता था, कि जो लोग कभी नहीं पीए हैं, उनको पच नहीं सकता था। सहवाग बोले कि उनकी पत्नी ने कभी इतना शुद्ध दूध नहीं पिया था। जब पहली बार पिया तो उन्हें दिक्कत हुई तब सहवाग ने कहा कि इसमें आधा पानी मिलाकर पियो।
सहवाग ने कहा कि उनके पिता को किसी बात की फिक्र नहीं थी। रात को एक अद्धा चाहिए होती थी और दिन में एक पैकेट सिगरेट की जरूरत रहती थी। उसके अलावा वे पूरे दिन पत्ते खेलते थे। वे आढ़ती का काम करते थे। किसानों से अनाज लिये उसे मार्केट में बेच दिये। बीच का कमीशन लेकर चले आए।