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पिता कोयला खदान में मजदूर थे, पैसे की बहुत तंगी थे, जानिये क्रिकेटर उमेश यादव के संघर्षों की दास्तान

भारत के क्रिकेट खिलाड़ियों में कई ऐसे हैं, जो क्रिकेटर बनने से पहले काफी गरीबी और यातना भरी जिंदगी से गुजरे हैं। उनके परिवार में बेटे को क्रिकेटर बनाने के बारे में माता-पिता सोचते भी नहीं थे। उमेश यादव ऐसे ही क्रिकेटर है। वह बीस साल की उम्र तक टेनिस बॉल से अपने घर में ही खेलते थे। उनके पिता कोयला खदान में मजदूर थे। जिंदगी में बहुत संकट की स्थिति थी।

एक दिन की बात है उमेश यादव अपने घर के पास एक टेनिस बॉल टूर्नामेंट में खेल रहे थे। वहां पर जब उमेश यादव गेंदबाजी कर रहे थे तो उनको एक एकेडमी में काम करने वाले व्यक्ति ने देखा। उनकी गेंदबाजी और सटीक यार्कर देखकर वह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने इसकी जानकारी अपने एकेडमी के साथियों को दी। धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि एक बॉलर है जो काफी अच्छी गेंदबाजी कर सकता है।

शहर के दूसरे हिस्से के क्रिकेटरों में भी उनकी पहचान बनी। फिर यह बात विदर्भ के क्रिकेट एसोसिएशन के सेक्रेटरी को पता चली तो उन्होंने उमेश को बुलवाया और उनसे पूछा कि क्या आप नागपुर डिस्ट्रिक्ट लेवल के लिए खेलोगे। उमेश यादव ने कहा मौका मिलेगा तो जरूर खेलूंगा। उमेश ने जब पहली बार सीजन बॉल हाथ में ली और बॉलिंग की तो पहले ही मैच में आठ विकेट लिये। इसके बाद वे इतना प्रसिद्ध हो गये कि पूरे नागपुर में लोग उनको जानने लगे।

उसी साल उनको विदर्भ समर कैंप में जाने का अवसर मिला, लेकिन उनके पास स्पाइक्स जूते नहीं होने से कोच ने उन्हें निकाल दिया। इससे वे बेहद निराश हो गये। पैसे न होने से वे महंगे जूते नहीं खरीद सकते थे। बहरहाल काफी प्रयास के बाद उनको विदर्भ रणजी टीम में खेलने का अवसर मिला।

इसमें उन्होंने चार मैचों में बीस विकेट लिये। इसके बाद वे दिलीप ट्राफी में खेलने का अवसर पाये। इसमें एक मैच में पांच विकेट गिराये। इसमें वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ को भी आउट किया। इस तरह वह क्रिकेट जगत में आगे बढ़े और कुछ दिन बाद आईपीएल के ऑक्शन में उनका नाम गया और दिल्ली की टीम ने उनको खरीदा।

वेंकट नटराजन खेल पत्रकार हैं। क्रिकेट में इनकी ना केवल रुचि है, बल्कि यह क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी भी रह चुके हैं। क्रिकेट से जुड़े क़िस्से लिखने के अलावा वेंकट क्रिकेट Match Live Update, Cricket News in Hindi कवर करने में भी माहिर हैं।