सुनील गावस्कर एक ऐसे क्रिकेटर रहे हैं, जो जब युवा थे और खेल रहे थे, तब भी सबके लिए सोचते थे और जब रिटायर हुए तब भी सबके लिए सोचते थे। 1993 के विश्वकप विजेता भारतीय टीम के कप्तान रहे कपिल देव गावस्कर को अपना हीरो बताते हैं। 1992-93 में जब मुंबई में आतंकी हमला हुआ था, शहर में दंगे हुए थे, तब तक गावस्कर क्रिकेट से रिटायर हो चुके थे। उसी दौरान एक बड़ी और भयानक घटना हुई। प्रसिद्ध इतिहासकार, रामचंद्र गुहा ने इस घटना का विवरण अपने एक लेख में दिया है।
दरअसल मुंबई दंगे के बाद लोगों में जबर्दस्त गुस्सा था। हर तरफ आगजनी, लूटमार, पत्थरबाजी चल रही थी। इसी दौरान गावस्कर को पता चला कि एक कार ड्राइवर और उसका परिवार उनके घर के सामने से गुजरने वाला है। वह दूसरे समुदाय का था, लिहाजा उस समय लोग गुस्से में थे।
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कई लोग सड़क पर उस कार की इंतजार में खड़े थे। उनकी योजना थी कि जब कार आएगी तो उस पर हमला करेंगे। गावस्कर को योजना की जानकारी हुई तो वे पास में रह रहे साथी क्रिकेटरों को बुला लिए और जान की बाजी लगाकर उस कार ड्राइवर और उसके परिवार वालों को बचाने के हमलावरों से भिड़ गये।
जैसे ही कार आई, लोग उस पर पत्थर बरसाने लगे। गाड़ी में सवार महिलाएं और बच्चे जान की भीख मांगते हुए उन्हें छोड़ने की गुहार लगाते हुए रोने लगे। गावस्कर और उनके साथी क्रिकेटर हमलावरों के बीच खड़े होकर जोर-जोर से बोले कि पहले मुझ पर पत्थर चलाओ तब इनको मारना।
गावस्कर के प्रयास से कार ड्राइवर और उनका परिवार बच गया। लेकिन यह ऐसी घटना थी, जिसमें गावस्कर ने जान लेने पर आमादा भीड़ से सीधे मुकाबला किया था। गावस्कर जिस तरह मैदान पर बिना हेलमेट लगाए पूरी निडरता से अपने समय के खुंखार तेज गेंदबाजों का सामना करते थे, वैसी ही निडरता के साथ वह मैदान के बाहर खून के प्यासे लोगों से भिड़ गये थे।