क्रिकेटर शुभमन गिल, सरफराज खान और पृथ्वी शा आज जिस मुकाम पर हैं, वहां पहुंचाने में उनके पिता का काफी योगदान रहा है। ये तीनों ऐसे बच्चे थे, जिनके पिता ने तय कर रखा था कि बड़ा होकर बेटा क्रिकेटर ही बनेगा। इसके लिए तीनों के पिताओं ने काफी मेहनत और त्याग किया।
शुभमन गिल के पिता ने नाते-रिश्तेदारों के यहां किसी आयोजन में भी जाना छोड़ दिया था। उन्हें लगता था कि वहां गए तो शुभमन की प्रैक्टिस छूट जाएगी। और यह तब की बात है जब शुभमन केवल 4 साल के थे।
दीवार पर बॉल फेंकने के बाद बाउंस होकर आने पर बल्ले से मारा करते थे
उनके पिता ने हिदायत दे रखी थी कि प्रैक्टिस किसी हाल में नहीं छूटनी चाहिए। अगर प्रैक्टिस कराने के लिए कोई बोलर उपलब्ध नहीं हो तो बॉल दीवार पर फेंक कर प्रैक्टिस किया करते थे। दीवार पर बॉल फेंकने के बाद बाउंस होकर आने पर बल्ले से मारा करते थे। शुभमन के पिता किसान थे। पंजाब के गांव में रहते थे। लेकिन बेटे को क्रिकेट का बढ़िया माहौल देने के लिए गांव छोड़ चंडीगढ़ रहने के लिए आ गए थे।
सरफराज खान की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उनके पिता नौशाद ने बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने तय कर रखा था कि सरफराज रोज कम से कम 400 से 600 बॉल जरूर फेंकें।
नौशाद एक दिल छू लेने वाली कहानी भी सुनाया करते। सरफराज तब छोटा ही था। वह सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन के साथ खेला करते थे। वह कभी अर्जुन की टीम में होते तो कभी विरोधी टीम में। एक दिन सरफराज पिता के पास आया और बोला- अब्बू अर्जुन कितना नसीब वाला है ना। वह सचिन सर का बेटा है, उसके पास कार है, आईपैड है और सब कुछ है। नौशाद चुप रहे। कुछ बोल नहीं सके। लेकिन कुछ ही देर में सरफराज दौड़ते हुए नौशाद के पास आया और पिता को जोर से गले लगा कर बोला- मैं उससे ज्यादा नसीब वाला हूं। आप अपना पूरा दिन मेरे लिए कुर्बान कर देते हैं। उसके पिता उसे वक्त नहीं दे पाते।
पृथ्वी शॉ केवल 4 साल के थे, जब उनकी मां दुनिया को अलविदा कह गई थींं
पृथ्वी शॉ केवल 4 साल के थे, जब उनकी मां दुनिया को अलविदा कह गई थींं। लेकिन, पिता ने बेटे को क्रिकेटर बनाने का सपना नहीं छोड़ा। मां का रोल भी खुद निभाया। रोज सुबह-सुबह घर का जरूरी काम निपटा कर पृथ्वी को विरार से बांद्रा ट्रेनिंग के लिए भेजते थे। उनका विरार में कपड़े का बिजनेस था। वह भी उन्होंने छोड़ दिया, क्योंकि लोकल ट्रेन में अकेले सफर कर पृथ्वी विरार से बांद्रा नहीं जा सकते थे।