एक बार की बात है। सचिन फिल्म रोजा देखने के लिए गए थे। वर्ली (मुंबई) में। 1994 की बात है। पत्नी अंजलि, अंजलि के पापा और सचिन के कुछ दोस्त थे। सचिन ने पूरी तैयारी की। नकली दाढ़ी लगाई। चश्मा पहना। लेकिन, चश्मा सस्ता वाला था। उसका एक ग्लास निकल आया। सचिन ने सोचा चश्मा निकाला तो लोग पहचान लेंगे। वह किसी तरह एक आंख को ढंकते, सिर को झुकाते चले जा रहे थे। लेकिन, यह नुस्खा काम नहीं आया और वह पहचान लिए गए। उन्हें फिल्म देखे बिना लौटना पड़ा।
शिवाजी पार्क का वड़ा पाव उन्हें बेहद पसंद है
हर मुंबईकर की तरह सचिन भी वड़ा पाव बड़े चाव से खाते हैं। शिवाजी पार्क का वड़ा पाव उन्हें बेहद पसंद है। उसका स्वाद उनके मन में बसा है। एक इंटरव्यू में उन्हें कार्टर रोड से मंगाया वड़ा पाव परोसा गया और कहा गया कि यह शिवाजी पार्क का है।
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उन्होंने पहले देखा और कह दिया कि शक लग रहा है। और, पहला ही टुकडा तोड़ कर मुंह में लिया तो यकीन से बोले कि शिवाजी पार्क का तो है ही नहीं।
इसी इंटरव्यू में सचिन ने बताया कि एक बार में छह-सात वड़ा पाव भी खा चुके हैं। वड़ा पाव, समोसा पाव, भाजी पाव…एक-एक करके खाते गए थे।
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सचिन खाने के ही शौकीन नहीं हैं, बल्कि शरारती भी थे। असल में उनका क्रिकेट खेलना भी शरारत की वजह से ही शुरू हुआ था। यह शरारत क्रिकेट में आगे बढ़ने के साथ भी जारी रही।
सौरभ गांगुली से जब पहली बार सचिन मिले तो भी उन्होंने एक शरारत की। इंदौर में स्टेडियम के पास ही उनका होटल था। गांगुली अपने कमरे में सो रहे थे। सचिन सुबह प्रैक्टिस से थक कर आए और देखा कि गांगुली सो रहे हैं तो उन्होंने दो-तीन दोस्तों को साथ लिया और उनके कमरे में पानी छोड़ दिया। इतना पानी कि जूते वगैरह तैरने लगे।
सौरभ के साथ सचिन की चुहलबाजी आगे भी जारी रही। सौरभ को सब ‘दादा’ कहते थे, लेकिन सचिन ‘दादी’ कह कर बुलाते थे।