टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू आज जिस तरह भाषण देते हैं, यह कला उनके अंदर काफी बाद में विकसित हुई है। शुरू में तो उन्हें लोगों के बीच बोलने से डर लगता था। स्कूल में डिबेट होने वाली होती थी तो वह छुट्टी ले लेते थे। वह यादविंद्र पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे। वहां उनके टीचर रहे अरविंद सिंह जवंडा ने एक टीवी शो में उनके बारे में बताया था कि जब सिद्धू से कहा जाता था कि तुम डिबेट और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लो तो गोल्ड मेडल भी जीत सकते हो। यह सुनते ही सिद्धू हाथ खड़े कर दिया करते थे।
क्रिकेटर बनने के बाद भी उनकी यह झिझक टूटी नहीं थी। वह पत्रकारों का सामना करने तक से बचते थे। जब भी वह अच्छा खेलते, शतक बनाते तो खेल के बाद इस डर से कि कहीं पत्रकार इंटरव्यू न लेने लगें, कहीं छुप जाते थे।
सिद्धू स्कूल में पढ़ाई में काफी तेज थे, लेकिन शर्मीले स्वभाव के थे। क्लास में हमेशा फर्स्ट आते थे। इसमें उनके पिता का भी काफी रोल था। वह घर पर उनकी पढ़ाई का काफी ध्यान रखते थे और रूटीन का पालन सख्ती से कराते थे। रोज स्कूल जाने से पहले 20 मिनट अंग्रेजी अखबार पढ़ना जरूरी था। बाद में पिता यह जांचते भी थे कि उन्होंने सचमुच में पढ़ा है या नहीं। अंग्रेजी समाचार रेडियो पर सुनना भी रोज के रूटीन में शामिल था। टीवी देखने की इजाजत नहीं होती थी।
कॉलेज में भी सिद्धू पढ़ाई में अच्छे रहे। सिद्धू ने लॉ की पढ़ाई भी की है। वहां भी उन्होंने अच्छा किया। पढ़ाई के साथ नौजवानों वाली मस्ती करने में भी सिद्धू आगे थे। उनके एक दोस्त थे सरबजीत सिंह रोजी। कुछ और दोस्तों के साथ इनकी टोली एक चाय दुकान के पास रेलिंग पर बैठ जाया करती थी। रोजी के बारे में सिद्धू का कहना है कि वह लड़कियों के सूट, साइकिल का रंग देख कर बता देते थे कि किस मोहल्ले से आ रही हैं।
जवानी के दिनों में करीब छह महीने उस रेलिंंग पर सिद्धू ने मस्ती करते हुए वक्त गुजारे। फिर जब पिता को पता चला तो जबरदस्त क्लास लगी। इसके बाद ही वहां की बैठकी छूटी।