क्रिकेटर खलील अहमद (Khaleel Ahmed) के पिता नहीं चाहते थे कि बेटा क्रिकेटर बने। लेकिन, खलील क्रिकेट छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। उनके पिता कंपाउंडर थे। वह जिस रास्ते हॉस्पिटल जाते, उसी रास्ते में वह मैदान भी था जहां खलील खेलने जाते थे। इसलिए वह अक्सर पकड़े जाते थे या फिर उन्हें पिता की नजरों से बचने के लिए कोई ना कोई तरकीब निकालनी होती थी।
खलील स्कूल से आने के बाद क्रिकेट खेलने तो जाते ही थे, लेकिन कई बार स्कूल जाने के नाम पर भी क्रिकेट खेलने चले जाते थे। ऐसे में स्कूल से उनकी शिकायत आती थी तो पिता की डांट और कभी-कभी मार भी खानी पड़ती थी।
आईपीएल के लिए जिस दिन खिलाड़ियों की नीलामी हो रही थी उस दिन खलील के पिता सुबह सात बजे ही टीवी ऑन कर बैठ गए। केवल चाय पी। खाना-पीना छोड़, बेटे का नाम आने का इंतजार करते रहे। शाम सात बजे वह घड़ी आई। सनराइजर्स हैदराबाद ने खलील को तीन करोड़ रुपए में खरीद लिया था।
सुनते ही पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पूरे गांव में रसगुल्ले बंटवाए गए। खलील की बड़ी बहन उस समय किसी वलीमा (रिसेप्शन) में गई थीं। उन्होंने खाना खाने के लिए प्लेट हाथ में लिया ही था कि फोन पर खबर मिली। खुशी के मारे उनका मुंह खुला का खुला रह गया और प्लेट हाथ में ही रह गया।
खलील की मां अपने बेटे को कई नामों से पुकारती हैं। जितनी भी मिठाइयां हैं, सबके नाम से वह खलील को पुकारती हैं। वह उनकी सबसे छोटी संतान है। खलील की तीन बड़ी बहनेंं हैं। पिता कंपाउंडर का काम करते थे। उनका शुरुआती जीवन अभाव और सादगी में बीता है। वह फिल्में भी नहीं देखते।
खलील खुर्शीद अहमद का जन्म 5 दिसंबर, 1997 को टोंक (राजस्थान) में हुआ था। उन्होंने 21 साल की उम्र में टीम इंडिया के लिए पहला मैच खेला। जब वह बोलिंंग करते हैं तो घर पर उनकी मां बुदबुदाती हैं- ये कैसी गेंद फेंक रहा, इसे समझ क्यों नहीं आ रहा। तब उनके पिता समझाते हैं कि वह टीवी पर आ रहा है, तुम्हारी बातें सुन नहीं पाएगा।