भारत को क्रिकेट का पहला विश्व कप दिलाने वाली टीम के कप्तान रहे कपिल देव (Kapil Dev) के क्रिकेट में आने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। कपिल को पढ़ाई से दूर भागना था तो उन्होंने क्रिकेट से करीबी बना ली। वैसे, उन्हें फुटबॉल खेलना पसंद था। फिर भी उन्होंने क्रिकेट खेलना चुना। इसकी वजह भी अजीब है। फुटबॉल घंटे-दो घंटे में खत्म हो जाता था। गेम खत्म होने के बाद फिर मजबूरी में पढ़ना पड़ता था। इसलिए उन्होंने घंटों चलने वाला क्रिकेट खेलना चुना था।
कपिल ने जब पढ़ाई से बचने के लिए क्रिकेट में ध्यान लगाना शुरू किया तो उनके पिता ने भी साथ दिया। वह चाहते थे कि अच्छी प्रैक्टिस हो और इसके लिए वह कोच के पास बेटे को लेकर जाते थे। लेकिन जिस भी कोच के पास लेकर जाते थे वहां यही सुनने को मिलता था कि ये तो बहुत दुबला है। आप इन्हें दूध पिलाइए।
कोच की यह बात सुन कर कपिल देव के पिता ने गाय लेकर घर के पिछवाड़े बंधवा दी। फिर तो चार-पांच साल तक कपिल ने इतना दूध पीया कि पूछिए मत।
कपिलदेव के पिता देश के बंटवारे के समय चंडीगढ़ शिफ्ट हो गए थे। वह किसान परिवार से आते हैं। उनका जन्म 6 जनवरी, 1959 को चंडीगढ़ में खत्री परिवार में हुआ था। वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। उनकी भी एक ही संतान (बेटी) है, जो शादी के 16 साल बाद (1996 में) पैदा हुई थी।
कपिल ने अपना डेब्यू 1975 में हरियाणा के लिए पंजाब के खिलाफ खेल कर किया। इसमें उन्होंने 63 रन बनाकर हरियाणा को जीत दिलाई। वह उस दौर में क्रिकेट खेले थे, जिसके बारे में बात करते हुए वह कैलरीज, प्रेशर जैसी बातें (जो आजकल खूब सुनने को मिलती हैं) को बेतुका बताते हैं।
कपिल देव का मानना है कि क्रिकेट में ‘प्लेजर’ है और जहां प्लेजर हो, वहां ‘प्रेशर’ कैसे हो सकता है। उसी तरह खिलाड़ियों के फिटनेस के बारे में उनका कहना है कि आजकल बात होती है कैलरीज कम लो, हमारे जमाने में हम सोचते थे कि बढ़िया खाना तो मिले, क्योंकि उस समय इतने पैसे ही नहीं होते थे कि बढ़िया खाना भी खा सकें। तब वह दौर था, जब विदेश दौरे पर गए खिलाड़ियों को कोई भारतीय परिवार अपना मेजबान बनाता था और खाना खिलाता था।