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ऐसे बढ़ी भारत में क्रिकेट की दीवानगी, जानें कैसे हुआ देश में टीमें गठित करने का फैसला

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भारत में जब अंग्रेज क्रिकेट खेलने आए तो वे इस तरह मैदान में खेलते थे। (फोटो- सोशल मीडिया)

भारत परंपरावादी देश है और यहां पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग संस्कार रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे शिक्षा बढ़ी लोगों की मानसिकता भी बदलने लगी। पहले आउटडोर गेम्स में महिलाओं की मौजूदगी बिल्कुल नहीं होती, अब न केवल मौजूदगी है, बल्कि महिलाएं सभी प्रकार के खेलों में बढ़-चढ़ कर भाग ले रही हैं और देश के लिए पदक भी जीत रही हैं। ओलंपिक से लेकर क्रिकेट तक भारतीय महिलाओं ने हर तरह के खेलों में अपनी प्रतिभा साबित की है।

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भारत में औपचारिक रूप से पहली बार क्रिकेट की शुरुआत तब हुई जब 1792 में कोलकाता (तब कलकत्ता) में क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। उस समय यहां अंग्रेजों का शासन था। उस समय तक ब्रिटेन में क्रिकेट की लोकप्रियता काफी बढ़ चुकी थी और काउंटी टीमें गठित हो चुकी थीं। तब अंग्रेजों ने तय किया कि भारत में भी ऐसी टीमें गठित की जाएंगी।

18वीं सदी के अंतिम दशक में यूरोप से समुद्री नावों पर सवार होकर भारत में व्यापार करने आए कुछ लोगों ने पहली बार यहां के स्थानीय लोगों को इस खेल की जानकारी दी। उस समय भारत में लॉर्ड कार्नवालिस गवर्नर जनरल थे। कार्नवालिस के समय में यूरोप से बड़ी संख्या में व्यापारी भारत पहुंच रहे थे।

कई तो यहीं बस गये। इससे कलकत्ता और आसपास के शहरों में अच्छी खासी अंग्रेजी आबादी हो गई थी और कारोबार के साथ क्रिकेट के प्रति रुचि भी खूब तेजी से फैलनी लगी। भारत में पहली बार टूर्नामेंट की तरह मैच 1721 में गुजरात के बड़ौदा में खेला गया था। हालांकि इसमें भारतीयों से ज्यादा अंग्रेज लोग थे।

तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई टीमें बनाई थीं। क्रिकेट में भारतीय कम जरूर थे, लेकिन इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और 1848 में पहली बार बंबई (अब मुंबई) में पारसी कम्युनिटी ने ओरिएंटल क्रिकेट क्लब बनाया। यह पहला क्लब था, जिसे पूरी तरह से भारत में रहने वाले नागरिकों ने बनाया था। इसके बाद नियमित रूप से मैचों का दौर शुरू हुआ और टीमें एक-दूसरे के यहां खेलने के लिए आने जाने लगीं।

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