जिस सचिन को पहले शिष्य तक नहीं बनाना चाहते थे रमाकांत अचरेकर, बाद में उसी तेंदुलकर के लिए हो गए थे समर्पित
क्रिकेट की दुनिया में सचिन तेंदुलकर को ऐसा कौन होगा, जो नहीं जानता होगा। भारत के सबसे ज्यादा मशहूर खिलाड़ियों में सचिन एक ऐसा नाम है, जिसके रिकॉर्ड हर नए खिलाड़ी को प्रेरित करते हैं। सचिन ने अपनी जिंदगी के तमाम पहलुओं को अपनी आत्मकथा ‘सचिन तेंदुलकर- प्लेइंग इट माई वे’ में विस्तार से लिखा है। सचिन लिखते हैं कि गुरु का ज्ञान और वरिष्ठों की सलाह की कभी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने लिखा- एक खिलाड़ी को सजगता, सलाह और समर्पण पर हमेशा फोकस रखना चाहिए।
गुरु रमाकांत अचरेकर बोलते थे- फिटनेस के प्रति लापरवाही बिल्कुल नहीं
दरअसल सचिन के कोच रमाकांत अचरेकर (जिन्हें वे अपना गुरु मानते थे) कहते थे कि क्रिकेट खेलना है तो फिटनेस के प्रति जरा सी भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए। अचरेकर सचिन से कहते थे कि रोजाना खेलने के बाद पैड ग्लव्स और बैट के साथ पूरे मैदान का चक्कर लगाओ। वह भी एक नहीं दो बार ऐसा करना चाहिए। सचिन तेंदुलकर नियमित रूप से ऐसा करते थे। सचिन मैच खेलने रोजाना मैदान पर जाते थे। अगर किसी दिन किसी वजह से वे ऐसा नहीं कर सके तो उनके गुरु रमाकांत अचरेकर उनके घर आ जाते थे और अपनी स्कूटर पर बैठाकर उनको ले जाते थे। इतना समर्पण उस खिलाड़ी के लिए वे दिखाते थे, जिसे वे पहले अपना शिष्य बनाने तक को तैयार नहीं थे।
नेट प्रैक्टिस के लिए नहीं पहुंचने पर रमाकांत अचरेकर उनके घर पहुंच जाते थे
सचिन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि उनके बड़े भाई अजीत तेंदुलकर को ऐसा लगता था कि “मुझे अच्छी कोचिंग मिल जाए तो मैं बड़ा खिलाड़ी बन सकता हूं।” इस उम्मीद के चलते वे एक दिन सचिन को लेकर रमाकांत अचरेकर के पास गये, लेकिन अचरेकर ने सचिन को देखकर उनका कोच बनने से मना कर दिया। अजीत ने अचरेकर के पास जाकर धीरे से आग्रह किया कि वे एक बार सचिन को बिना बताए उनको खेलते हुए देख लें। इस पर वे राजी हो गये। जब उन्होंने ऐसा किया तो उनके विचार बदल गये। उन्होंने सचिन को न केवल अपना शिष्य बनाया, बल्कि उनके लिए पूरी तरह से समर्पित हो गये। यही वजह थी कि जब सचिन नेट प्रैक्टिस के लिए नहीं पहुंचते थे तो रमाकांत अचरेकर उनके घर पहुंच जाते थे।
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जिस दौर में सचिन ने खेलना शुरू किया था, उस दौर में आज की तरह आईपीएल तथा दूसरे टूर्नामेंट और मैच नहीं होते थे, लिहाजा आगे बढ़ने के अवसर भी कम मिलते थे। किसी खिलाड़ी को टीम इंडिया में जगह मिलना बड़ी बात होती थी। सचिन ने 16 साल 238 दिन की उम्र में अंतरराष्ट्रीय मैच में अपना कदम रख दिया था। अपनी किताब में सचिन लिखते हैं- मेरा पहला अंतरराष्ट्रीय एकदिवसीय मैच पाकिस्तान के खिलाफ 18 दिसंबर 1989 को गुजरांवाला में था। इस मैच में वे जल्द आउट हो गये। शुरुआत अच्छी नहीं हुई।
वे बताते हैं कि पाकिस्तान के फास्ट बॉलर वसीम अकरम और वकार यूनुस ने उनको काफी परेशान किया। सचिन ने धैर्य नहीं खोया और अपने सीनियर साथियों से बातचीत कर हालात को समझने की कोशिश की। उनकी सलाह पर अमल किया और उसके बाद जो कुछ हुआ वह इतिहास बन गया। सचिन हर तरह के गेंदबाजों की गेंदों पर जमकर रन बनाए। क्रिकेट जगत में वे रन मशीन कहे जाने लगे।