भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान अजहरुद्दीन ने काफी कम उम्र से ही क्रिकेट से प्यार करना शुरू कर दिया था। उनके घर में कई सारे खिलाड़ी थे। सब क्रिकेट नहीं खेलते थे, पर बाकी खेल खेलते थे। अहजर के पापा, नाना, मामा सब खेलते थे। सो, अजहर भी बचपन से ही क्रिकेट खेलने लगे थे। यह शौक धीरे-धीरे जुनून में बदलने लगा था।
अजहर को जो पॉकेट मनी मिलती थी, उससे भी उन्होंने बल्ला ही खरीदा। पैसे जुटा कर उन्होंने पहली बार इम्पोर्टेड बैट खरीदा। कुछ पैसे कम पड़ रहे थे तो मामी शहाना जैन ने दिए।
अजहर के मामा आबिद जैन एसबीआई में काम करते थे। बचपन में अजहर मामा के साथ स्कूटर पर बैठ कर बैंक के मैच में जाया करते थे। जब मैच में खिलाड़ी कम पड़ जाते तो अजहर फील्डिंग किया करते थे। नहीं तो स्कोरिंग करते।
अजहर को क्रिकेटर बनाने में कई लोगों का अहम योगदान है। उनके स्कूल के टीचर ब्रदर जोजफ भी उनमें से एक हैं। अजहर को स्कूल में सीनियर्स अपने साथ नहीं खेलने देते थे। तब ब्रदर जोजफ ही थे जो उन्हें ऑर्डर देते थे कि इस बच्चे को भी खेलाओ। स्कूल के कोच वसीम उल हक ने भी अजहर को क्रिकेट सिखा कर उन्हें टीम इंडिया में खेलने लायक बनाने में अहम योगदान दिया।
पीआर मान सिंह। एक और शख्स, जिनका अजहर को इंटरनेशनल क्रिकेटर बनाने में अहम रोल रहा। मान सिंंह हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के सेक्रेटरी थे।इन्होंने ही पहली बार अजहर को हैदराबाद टीम के लिए चुना था। मान सिंंह की छवि सख्त प्रशासक और कड़ाई से अनुशासन रखवाने वाले व्यक्ति की थी। युवा खिलाड़ी उनसे बात करने में भी डरते थे। मान सिंंह पहले शख्स थे, जिन्होंने अजहर को पहला इंग्लिश क्रिकेट बैट गिफ्ट किया था।
अजहर खाने-पीने के बड़े शौकीन थे। 1987 वर्ल्ड कप के दौरान की बात है। दिल्ली में कंडीशनिंग कैंप लगा था। उदयपुर से टीम दिल्ली आई थी। टीम और कोच सब एक होटल में ठहरे थे। वहां खाने का भी इंतजाम था, लेकिन अजहर रोज दूसरे होटल में जाकर खाया करते थे।