Sourav Ganguly: सब कहते थे कि छोड़ दो क्रिकेट, लेकिन मन कहता था- डटे रहो, दादा ने जीवनी में लिखा- निराशा से कैसे उबरे
Sourav Ganguly: टीम इंडिया के सफल कप्तानों में से एक सौरव गांगुली की एक खास विशेषता यह रही है कि वे अपने को तनाव मुक्त रखते हैं। परेशानी के दौर में भी वह हालात से जूझने में भरोसा रखते हैं। जिस समय उन्हें टीम इंडिया की जिम्मेदारी दी गई थी, उस वक्त हालात बेहद कठिन थे। कई खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे। अधिकतर खिलाड़ी अपने कैरियर को लेकर परेशान थे। टीम का आत्मविश्वास कमजोर हो गया था।
ऐसे समय में टीम की कप्तानी करना आसान नहीं होता है। लेकिन सौरव गांगुली उन खिलाड़ियों में नहीं हैं जो इतनी जल्दी हार मान लें। वह मुकाबला करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यही वजह है कि टीम इंडिया को संकट से उबारने और उनमें फिर से जीत का भरोसा दिलाने में वे सफल रहे।
टीम इंडिया के नए कोच ग्रेग चैपल के आने के बाद छीन ली गई थी कप्तानी
गांगुली ने टीम इंडिया की कमान 2000 में संभाली थी और 2005 तक वे इसके कप्तान रहे। अपनी ऑटोबॉयग्राफी ‘अ सेंचुरी इज नॉट इनफ’ (A Century Is Not Enough) में गांगुली लिखते हैं कि जब भारतीय टीम के कोच जॉन राइट का कार्यकाल खत्म हुआ और ग्रेग चैपल नए कोच बनाए गए तब काफी कुछ बदल गया। उनसे कप्तानी छीन ली गई। उनको टीम से भी बाहर कर दिया गया। टीम इंडिया को मुश्किल हालात से बाहर निकालने वाले दादा सौरव गांगुली खुद मुश्किल हालात में फंस गये थे।
कई बार उनको लगा कि अब शायद ही टीम में मौका मिले। यहां तक कि उनके पिता चंडीदास गांगुली ने उनसे क्रिकेट छोड़ देने तक की सलाह दे दी थी। लेकिन गांगुली के व्यक्तित्व का एक दूसरा पक्ष भी था। जो यह बताता था कि डटे रहो, समय बदलेगा और वह व्यक्तित्व के इस पुकार को सुनकर डटे रहे। उन्होंने फैसला किया कि वह टीम में वापसी के लिए और कड़ी मेहनत करेंगे।
सौरव अपनी किताब में लिखते हैं कि इस माहौल में उनके घर के लोग निराश थे। पत्नी डोना भी काफी दुखी रहती थीं। उनकी मां का ज्योतिषियों पर काफी विश्वास था। वे लोग उनकी मां को तरह तरह के सलाह देते थे। मां कहती थी कि ज्योतिषियों की बताई अंगूठी या धागा पहनने से किस्मत बदल सकती है। हालांकि सौरव को इस पर भरोसा नहीं था।
सौरव ने जी तोड़ मेहनत की। जबर्दस्त तैयारी की और फिर टीम इंडिया में वापसी की। न केवल वापसी की, बल्कि कई मौकों पर रन भी बनाए, टीम को जीत दिलाए और उसके बाद बीसीसीआई के चेयरमैन तक बने।