टीम इंडिया के क्रिकेटर अक्षर पटेल जब 12 साल के हुए तो उनके पिता राजेश भाई ने उनसे साफ पूछा- पढ़ना है कि क्रिकेट खेलना है। अक्षर ने जवाब दिया- क्रिकेट खेलना है। राजेश भाई बेटे को लेकर खेड़ा की एक क्रिकेट एकेडेमी में गए और अक्षर को कोच के हवाले कर दिया। तब से अक्षर ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
अक्षर की मां कभी नहीं चाहती थीं कि बेटा क्रिकेट खेले। उन्हें डर था कि बेटे को चोट लग जाएगी। उनके दादा की भी इच्छा नहीं थी कि पोता क्रिकेट खेले। पर, पिता ने बेटे का पूरा साथ दिया।
अक्षर पटेल के पिता एक बार मौत के मुंह से बच कर आए हैं। 2010 में राजेश भाई रात में दोस्तों के साथ चाय पीने निकल गए। तभी वह एक हादसे का शिकार हो गए। हादसे में उनकी खोपड़ी का बायां हिस्सा बुरी तरह चोटिल हो गया। उनके सिर में बुरी तरह चोट लगी थी। उन्हें ठीक होने में 4 महीने से भी ज्यादा लग गए। उनके कोमा में जाने का और याददाश्त पूरी तरह चले जाने का खतरा था। लेकिन अक्षर ने अपना सब कुछ पिता के इलाज में लगा दिया। उन्हें विदेश तक ले जाने के लिए तैयार थे।
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उस तनाव भरी स्थिति में भी अक्षर पटेल ने हौसला नहीं खोया। उनके पिता ठीक होने के बाद भी काफी समय तक ज्यादा बातचीत नहीं कर पाते थे। अक्षर के पिता जिस समय हादसे का शिकार हुए, उस समय संयोग से कोई मैच नहीं चल रहा था। करीब 1 महीना तक वह पिता के साथ ही रहे। उसके बाद वह लंदन टूर पर गए। लेकिन वहां से भी लगातार घर के संपर्क में थे और लगभग रोज फोन करके पिता का हालचाल लिया करते थे।
अक्षर पटेल को उनके बचपन के दोस्त जयसूर्या कहकर बुलाते थे। सुबह एकेडेमी में क्रिकेट की ट्रेनिंग होती थी और शाम को लाइट के बीच टेनिस बॉल क्रिकेट खेला जाता था। वहीं साथी खिलाड़ियों ने उन्हें ‘नाडियाड का जयसूर्या’ नाम दिया।
आज अक्षर पटेल के पास बहुत सारा पैसा आने के बाद भी नाडियाड से उनका और उनके परिवार का रिश्ता कभी नहीं टूटने वाला है। उनकी मां कहती हैं कि उनका दिल आज भी एक छोटे से कमरे में ही बसता है। परिवार नाडियाड में ही रहेगा। अक्षर पटेल आज भी ‘नाडियाड के जयसूर्या’ ही हैं। पटेल परिवार ने हाल ही में नाडियाड के श्री संतराम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया है।
अक्षर पटेल के नाम से जुड़ा भी एक किस्सा है। शुरू में उनके नाम की स्पेलिंग AKSHAR हुआ करती थी, लेकिन प्रिंसिपल ने गलती से AXAR लिख दिया। इसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि अब अपना नाम AXAR ही रखेंगे।