100 ओवर, 200 रन, कोई मेडन नहीं और कोई विकेट भी नहीं; बिशन सिंह बेदी को डिक्टेटरशिप कहा जाने लगा था, जानिये क्यों
पूर्व भारतीय क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी (Bishan Singh Bedi) अपने जमाने में बाएं हाथ के स्पिनर के रूप में जबर्दस्त गेंदबाजी करते थे। वह अपनी कुशल फ्लाइट, चालाकी और पिच पर पर्याप्त कर्व उत्पन्न करने में माहिर थे। उनकी सहज और लयबद्ध गेंदबाजी एक्शन ने उन्हें क्रिकेट की दुनिया में एक जबरदस्त ताकत के रूप में पहचान दी।
1970 के दशक की प्रसिद्ध भारतीय स्पिन चौकड़ी का बेदी एक अभिन्न हिस्सा थे, जिसमें इरापल्ली प्रसन्ना (Erapalli Prasanna), भागवत चंद्रशेखर (Bhagwat Chandrasekhar) और श्रीनिवास वेंकटराघवन (Srinivas Venkataraghavan) भी शामिल थे। इस चौकड़ी ने उस दौरान भारत की जीत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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बिशन सिंह बेदी जितने अच्छे गेंदबाज थे, उतने ही सख्त मिजाज का उनका स्वभाव भी रहा है। एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि वह डिक्टेटरशिप की तरह क्यों व्यवहार करते हैं। उनके बारे में यह आरोप लगाया जाता था कि वे सारी गेंदें खुद ही फेंकते थे और बॉलिंग एनालिसिस ऐसी होती थी कि 100 ओवर, 200 रन कोई मेडन नहीं और कोई विकेट भी नहीं। इस पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है।
वे बोले- ऐसा कभी हुआ होगा, लेकिन यह हमेशा नहीं होता है। जब उनसे पूछा गया कि प्रसन्ना, चंद्रशेखर और वेंकटराघवन की जगह बदलती रही है, लेकिन उनकी जगह हमेशा बरकरार रहती है तो वे बोले कि वे ज्यादा मेहनत करते थे। बेदी ने कहा कि तीनों क्रिकेटर बहुत अस्थिर क्रिकेटर थे कि मैं उनका कभी मुकाबला नहीं कर सकता।
बिशन सिंह बेदी ने 1976 से 1978 तक भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी की। अपनी कप्तानी के दौरान उन्होंने टीम की एकता और अनुशासित दृष्टिकोण पर जोर दिया। उन्होंने बड़े दृढ़ संकल्प के साथ टीम का नेतृत्व किया और युवा प्रतिभाओं को निखारने में मदद की।
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद बेदी कई तरह के सामाजिक कार्यों में जुट गये। तमाम मुद्दों पर वह मुखर होकर बोलते थे। वह खिलाड़ी के अधिकारों, क्रिकेट की व्यवस्था में सुधारों और खेल भावना के मुखर हिमायती रहे हैं। बेदी ने हमेशा निष्पक्ष खेल और क्रिकेट की अखंडता को बनाए रखने के महत्व पर बल दिया।