Sourav Ganguly: कहते है कि कभी कभी क्रिकेट में एक निर्णय आपको हरा सकता है या आपको जीतने में बड़ा अहम होता है। यह बात सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) के ऊपर बिलकुल सही से लागू होती है जब सौरव गांगुली के एक फैसले ने भारत के वर्ल्ड कप का सपना तोड़ दिया था।
यह बात है साल 2003 के वर्ल्ड कप (World Cup) फाइनल की जब भारत के कप्तान सौरव गांगुली ने फाइनल मैच में टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला ले लिया था। बड़े मैचों में टीमें हमेशा पहले बल्लेबाजी करके बोर्ड पर रन लगाना पसंद करती है। क्योंकि चेस करते समय टीमों पर दबाव बहुत ज्यादा होता है। तब भी यही ट्रेंड चलता था तब तक हुए 7 वर्ल्ड कप में केवल 2 ही बार टीमों ने रनों का पीछा करके फाइनल जीता था।
Auatralian Cricket Team: सिर्फ दो बार ही हुआ है फाइनल में लक्ष्य का पीछा
1996 में श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 233 रनों का पीछा किया था जबकि 1999 में ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान को 132 रनों पर ऑल आउट करके आसानी से लक्ष्य का पीछा कर लिया था। दादा ने तब भी ऑस्ट्रेलिया जैसी ताकतवर टीम के सामने पहले गेंदबाजी करने का फैसला तब लिया जब पिच पर कोई मदद नहीं मौजूद थी।
इसका नतीजा पहले ओवर में ही देखने को मिल गया जब जहीर खान (Zaheer Khan) ने अपने पहले ही ओवर में 17 रन दे दिए। जिसमें एक बाई का चौका भी शामिल था। ऑस्ट्रेलिया ने मात्र 13वें ओवर में ही 100 रन का आंकड़ा पार कर लिया। एडम गिलक्रिस्ट (Adam Gilchrist) ने और मैथ्यू हेडन (Matthew Hayden) ने मिलर पहले विकेट के लिए 107 रनों की साझेदारी की। पूरे टूर्नामेंट में कप्तान रिकी पॉन्टिंग (Ricky Ponting) का बल्ला खामोश रहा था। लेकिन सबसे बड़े मैच के लिए कप्तान ने अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन बचा के रखा था।
पॉन्टिंग ने डेमियन मार्टिन (Damien Martin) के साथ मिलकर भारतीय गेंदबाजों की जमकर धुलाई की। कोई भी गेंदबाज इन दोनों का विकेट लेना तो दूर परेशान करने में भी सफल नहीं हो पा रहा था। दोनों ने मिलकर तीसरे विकेट के लिए 234 रनों की साझेदारी की जो आज भी वर्ल्ड कप में सबसे बड़ी साझेदारी है। भारतीय टीम ने 37 अतिरिक्त रन दिए जो किसी भी फाइनल में सर्वाधिक रन है। ऑस्ट्रेलिया (Australia) ने 2 विकेट के नुकसान पर 359 रन बनाए। कप्तान पॉन्टिंग ने 140 और मार्टिन ने 88 रन बनाए।
Sachin Tendulkar: सचिन आउट, भारत की उम्मीदें आउट
भारत के लिए 360 रनों के स्कोर का पीछा करना लगभग नामुमकिन था। लेकिन फिर भी सभी की आस जगी हुई थी कि सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) है तो अभी कुछ भी हो सकता है। सचिन ने इस मैच के पहले तक टूर्नामेंट में 668 रन बना चुके थे। मैकग्रा (Glenn McGrath) और सचिन में जो लड़ाई जीतता उसके मैच जीतने के चांस बढ़ जाते। मैकग्रा ने अपने पहले ही ओवर में सचिन को आउट करके भारत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
भारतीय टीम ने उसके बाद लड़ने का प्रयास जरूर किया लेकिन उस पहाड़ जैसे लक्ष्य का पीछा करना लगभग नामुमकिन सा था। सहवाग (Virendra Sehwag) ने तेज तर्रार 81 रन बनाकर टीम को लक्ष्य की तरफ ले जाने की कोशिश की लेकिन वो नाकाफी ही साबित हुए। कोई भी बल्लेबाज उसके बाद कुछ नहीं कर सका और भारतीय टीम 125 रनों के बड़े अंतर से मैच हार गई थी।