टीम इंडिया का कोच (Team India Coach) कौन हो? क्या वह भारतीय हो सकता है या विदेशी हो या कोई और हो? इसको लेकर अक्सर विवाद होता रहता है। कई बार कई खिलाड़ी आरोप लगाते हैं कि विदेशी कोच उनके साथ भेदभाव करते हैं, तो दूसरी तरफ यह भी कहा जाता है कि भारतीय कोच अपने होते हैं और वह पूरी तरह से प्रोफेशनल रवैया नहीं अपनाते हैं। यह मुद्दा क्रिकेट जगत में चलता रहता है।
इस बारे में पूर्व भारतीय बल्लेबाज विरेंदर सहवाग (Virender Sehwag) का कमेंट बड़ा माकूल है। उनका कहना है कि यह बात बिल्कुल सही है कि विदेशी कोच खिलाड़ियों के साथ भेदभाव करते हैं। हालांकि इस तरह के आरोप भारतीय कोचों पर कम नहीं हैं। विरेंदर सहवाग ने ऑस्ट्रेलियाई ग्रेग चैपल (Australian Greg Chappell) की मिसाल देते हुए कहा कि पूर्व ऑस्ट्रेलियन खिलाड़ी ग्रेग चैपल ने उनसे वादा किया था कि उन्हें कप्तान बनाया जाएगा। सहवाग कहते हैं, “बदकिस्मती देखिये दो महीने बाद मुझे राष्ट्रीय टीम से बाहर कर दिया गया।”
सहवाग ने एक और मजे की बात बताई कि जब वह टीम इंडिया में खेलते थे तो सीनियर्स से कई बार उन्होंने पूछा कि कोई भारतीय कोच क्यों नहीं बनाया जा सकता है? इसके जवाब में उन्हें बताया जाता था कि पूर्वाग्रह एक बड़ा कारण है। यानी भारतीय कोचों के बारे में पहले से ही मन में एक धारणा बनी हुई है और वह उन्हें रोकती है।
खिलाड़ियो का यह भी कहना था कि भारतीय कोच मौजूदा टीम के बहुत से खिलाड़ियों को व्यक्तिगत रूप से पसंद करते हैं और कई को नापसंद करते हैं। यह एक बड़ी बाधा है। उनमें न्यूट्रलिटी नहीं रहती है। हालांकि सच यह भी है कि जो विदेशी कोच होते हैं, उनके भी कई खिलाड़ियों के प्रति पसंद-नापसंद की बातें होती हैं। वे भी पूर्वाग्रह से ग्रसित और प्रेरित होते हैं।
हालांकि कोच कोई भी हो, जब तक खुद में अच्छा करने की प्रेरणा नहीं होती, जबर्दस्त इच्छा शक्ति नहीं होगी, तब तक कोई भी कुछ नहीं कर सकेगा। खिलाड़ी अगर मैदान में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है तो कोच उसे आगे बढ़ने से रोक नहीं सकता है। और अगर खिलाड़ी का प्रदर्शन उस लेवल का नहीं है तो कोई भी कोच उसे लाख कोशिश के बाद जबरन आगे नहीं बढ़ा सकता है।