क्रिकेट कॅरिअर शुरू होते ही उमेश यादव के सिर से उठ गया मां का साया, एक बात का आज भी है मलाल
तेज गेंदबाजी से पहचान पाने वाले उमेश यादव क्रिकेट में नाम कमाने के बाद भी जमीन से जुड़े हुए हैं। वह मानते हैं कि पिता के बनाए रूटीन की वजह से वो यहाँ पहुंचे हैं। रात को जल्दी सोना, सुबह जल्दी उठ जाना, नदी किनारे चले जाना, दौड़ लगाना..
उमेश के पिताजी खदान में काम करते थे। काफी संघर्ष से उनकी जिंदगी गुजरी है। पिता की मेहनत को देखकर उन्हें लगता था क़ि कभी मैं अपने पिता के लिए कुछ कर पाऊंगा। एक बार उन्हें कैंप में बुलाया गया और जूते नहीं होने की वजह से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था। उमेश को इतना बुरा लगा कि वह खेलना ही छोड़ना चाहते थे। पर दोस्तों के समझाने पर उन्होंने अपनी जिद छोड़ी।
उमेश को क्रिकेटर बनाने में कोच सुब्रतो बनर्जी का काफी योगदान रहा है। बनर्जी कहते हैं क़ि मैंने उमेश को जिस स्पीड से बोलिंग करते देखा तभी समझ गया था क़ि ये आज नहीं तो कल इंडिया के लिए खेलेगा। वो आगे बताते हैं क़ि जब उमेश ने इंडिया के लिए खेलना शुरू किया तो उनके कपङे पहनने का ढंग बदलने लगा। पर उमेश दिल से जैसे थे आज भी वैसे ही हैं।
उमेश जूते के काफी शौकीन हैं। उन्हें बाइक चलाना बहुत पसंद है और खाने में दाल-रोटी-घी भाता है। उमेश की पत्नी बताती हैं क़ि उन्हें जब गुस्सा आता है तो घर के बाकी लोग बैक फुट पर हो जाते हैं।
उमेश ने जहां अपने पिता की मेहनत करीब से देखी, वहीं मां की बीमारी के भी गवाह रहे हैं। पर तब सिर्फ सोचा करते थे कि काश, इनके लिए कुछ कर पाऊं। 2011 में इंदौर में जब वह एक टूर्नामेंट में खेलने गए थे, तभी मां का देहांत हो गया। आज भी उमेश को लगता है क़ि अगर मां होतीं तो बात कुछ और होती। उमेश का कहना है क़ि अगर आज का टाइम होता तो वो अपनी मां का इलाज अच्छे से करा पाते और मां भी इस वक्त का मजा उठा पातीं। पर, किस्मत को ऐसा मंजूर नहीं था।
25 अक्तूबर, 1987 को जन्मे उमेश ने 2011 में टेस्ट डेब्यू किया था। उनका वनडे कॅरिअर 2010 में शुरू हुआ था। 2010 में ही पहली बार वह आईपीएल भी खेले थे।