आर. अश्विन छह साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलने लगे थे। पर, कोई ठोस डायरेक्शन नहीं होने की वजह से बात जम नहीं रही थी। हालांकि, मेहनत में कोई कमी नहीं थे। पिता भी लगे रहते थे। फिर भी। 14वें साल में उन्हें अंडर 14 में एक मैच खेलने का मौका मिला। कर्नाटक की ओर से। मैच चेन्नई में था। इस मैच में वह अच्छा खेल तो नहीं पाए, लेकिन चोटिल जरूर हो गए।
पेल्विस में चोट के चलते अश्विन का चलना-फिरना मुश्किल हो गया था। डॉक्टर ने सर्जरी बता दी। वह भी दो-दो बार। एक तो तुरंत और दूसरा करीब चार साल बाद। 1999 में ढाई लाख का खर्चा था। खर्च की ज्यादा चिंंता नहीं थी, क्योंकि अश्विन की मां जिस कंपनी में काम करती थीं वहां इलाज का पूरा खर्च मिल जाने का इंतजाम था। लेकिन, चिंंता कुछ और थी। क्या अश्विन क्रिकेट खेल पाएगा?
यह सवाल अश्विन की मां को परेशान कर रहा था। इस परेशानी में ही वह कंपनी से मेडिकल खर्च लेने के लिए कागजी औपचारिकताएं पूरी कर रही थीं। उस दौरान उनकी आंखों से आंसू निकल आए। वह थोड़ा जोर से रो पड़ी थीं। उनके रोने की आवाज बगल में बैठे रीजनल सेल्स मैनेजर ने सुनी। वह रोते हुए उनके पास आए। उन्होंने पूछा क्या हुआ तो अश्विन की मां ने बताया- मैंने छह साल की उम्र से अपने बेटे को क्रिकेट खेलते देखा है। और अब मुझे लग रहा है कि उसका सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया। यह सुन कर मैनेजर ने उन्हें हौंसला दिया और अपने रिश्तेदार डॉक्टर गोपालकृष्णन से मिलने की भी सलाह दी।
डॉ. गोपालकृष्णन अपोलो हॉस्पिटल में काम करते थे। जब अश्विन के माता-पिता उनसे मिलने गए तो पता चला कि वह तमिलनाडु क्रिकेट टीम के भी डॉक्टर थे। उन्होंने अश्विन को देखा और बिना सर्जरी के ठीक होने की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि आठ हफ्ता पूरा बेड रेस्ट कराइए। फिर एमआरआई कराएंगे। आठ महीने बीते और एमआरआई हुआ तो अश्विन की समस्या ठीक हो रही थी। करीब एक साल बाद वह बिना सर्जरी के फिर से मैदान पर उतरने लायक हुए। लेकिन, तेज बोलिंंग नहीं कर सके तो वह ऑफ स्पिनर बन गए।