चाचा ने टैलेंट न पहचाना होता तो आज भारत की महिला टीम की खिलाड़ी न होती, रेणुका ठाकुर ने याद किए संघर्ष के पल
हिमाचल प्रदेश की रेणुका ठाकुर जब तीन साल की थी, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मां ने की। मां ने उनको बहुत संघर्ष करके पाला था। रेणुका जब छोटी थी, तब वह पड़ोस के लड़कों के साथ खेलती थी। उनके चाचा भूपिंदर सिंह ठाकुर ने जब रेणुका को खेलते देखा तो उन्होंने उनको क्रिकेट में आगे बढ़ाने का फैसला किया।
एक इंटरव्यू में रेणुका ने अपनी शुरुआती जिंदगी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अगर चाचा ने उनको खेलते हुए नहीं देखा होता तो वह शायद आज भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिलाड़ी नहीं होती। चाचा ने उनकी मां से कहा कि रेणुका को बेहतर प्रशिक्षण के लिए हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ की महिला एकेडमी धर्मशाला में दाखिला कराना चाहिए। इससे वह अच्छी तरह क्रिकेट को सीख पाएंगी और आगे बढ़ पाएंगी। परिवार की सहमति पर रेणुका का एडमिशन एकेडमी में करा दिया गया। वह एकेडमी की पहली बैच की सदस्य हैं।
रेणुका के पिता भी क्रिकेट के शौकीन थे, लेकिन वे अपनी बेटी को क्रिकेट में आगे बढ़ते हुए देखने के लिए मौजूद नहीं हैं। रेणुका ने लंबी प्रैक्टिस की है और उनके खेल में निरंतरता रहती है। वह जल्दी हताश नहीं होती हैं। वह अच्छी इनस्विंगर हैं और डेथ ओवरों में यार्कर डालने में माहिर हैं। वह बेहतर और कुछ नया करने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं।
रेणुका ने भारतीय टीम की गेंदबाजी में जो धार दी है, वह उनको लंबे समय तक मैदान पर अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर देगी। वह तेज गेंदबाज हैं और टीम इंडिया के लिए जमकर विकेट ले रही हैं। चाहे टी20 मैच हो या अंडर-19 या फिर विश्व कप रेणुका ठाकुर ने हर जगह अपनी प्रतिभा साबित की हैं। इससे उनका और टीम इंडिया का भविष्य काफी उज्जवल है।